केस- एक
अलीगंज निवासी एक अधिकारी का बेटा प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा था। सेलेक्शन न होने पर डिप्रेशन में चला गया और गुमसुम रहने लगा। एक दिन घर में आत्महत्या का प्रयास किया। मां ने उसे बचाया। युवक को डिप्रेशन से निकालने के लिए दवाएं दी गईं। लगातार काउंसलिंग हुई। दो साल बाद वह परीक्षा पास करने में सफल रहा।
केस- दो
एक युवती की शादी ऐसी जगह हुई, जहां वह नहीं रहना चाहती थी। तनाव के चलते हालत यहां तक पहुंच गए कि वह मायके आ गई और दो बार आत्महत्या का प्रयास किया। निजी चिकित्सक ने उसे केजीएमयू भेजा। करीब एक साल दवा और काउंसलिंग के बाद अब वह हरदोई स्थित ससुराल में रह रही है। वह नौकरी भी कर रही है।
कोरोना काल में आत्महत्या के मामलों में इजाफा हुआ है। इसे चुनौती मानते हुए राष्ट्रीय स्तर पर यह प्रवृत्ति रोकने के लिए इंडियन साइकियाट्रिक सोसायटी ने सुसाइड हेल्पलाइन को जल्द अमलीजामा पहनाने की कवायद शुरू की गई है। एसोसिएशन इससे शासन से भी अवगत कराएगा। यदि सरकार का साथ मिला तो देश में आत्महत्या के मामले कम किए जा सकेंगे।
आत्महत्या के बढ़ते मामलों को देखते हुए इंडियन साइकियाट्रिक सोसायटी की नेशनल कमेटी की बैठक में सुसाइड हेल्पलाइन बनाने का फैसला लिया गया था। सोसायटी अध्यक्ष डॉ. पीके दलाल ने बताया कि कोरोना के बाद आत्महत्या के केसों का पुख्ता डाटा नहीं है, लेकिन जैसी सूचनाएं आ रही हैं, आंकड़े बढ़ने से इंकार नहीं किया जा सकता। अवसाद से युवाओं में यह प्रवृत्ति ज्यादा देखी गई है। यदि इस प्रवृत्ति को एक से दो मिनट के लिए टाल दिया जाए तो व्यक्ति सुसाइड की मनोदशा से बाहर निकल आता है। इसमें हेल्पलाइन कारगर साबित होगी।
प्रोजेक्ट में मेडिकल कॉलेजों के जरिये संबंधित इलाके के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, मनोचिकित्सा की पढ़ाई करने वालों को लोगों की काउंसलिंग का प्रशिक्षण दिया जाएगा। पहले चरण में मेडिकल कॉलेजों में हेल्पलाइन चलेगी, जिसका टोल फ्री नंबर दिया जाएगा। जब कोई व्यक्ति या कोई साथ में हो तो इस पर बात की जा सकती है।
काउंसलर धीरे-धीरे इस प्रवृत्ति को डालेंगे। यदि सरकार हेल्पलाइन चलाने की जिम्मेदारी ले लेगी तो इसका खुद विस्तार हो जाएगा। यह भी फायदा होगा कि मनोचिकित्सा की पढ़ाई करने वालों को नया रोजगार मिलेगा। काउंसलिंग में आने वालों का डाटा तैयार होगा। इसके आधार पर इलाज दिया जा सकेगा।
मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. अलीम सिद्दीकी बताते हैं कि आत्महत्या के ख्याल आते हैं तो व्यक्ति किसी से दुख बांटने का प्रयास करता है। जब कोई रास्ता नहीं मिलता तो आत्महत्या की ओर बढ़ता है। ऐसे में हेल्पलाइन सुसाइड गेट कीपर की भूमिका निभा सकती है। इसके तहत विभिन्न कालेजों में काउंसलिंग की जाती है। इससे छात्र अवसाद से उबर पा रहे हैं।
आत्महत्या के पीछे कई वजहें
डॉ. सिद्दीकी कहते हैं कि युवाओं में आत्महत्या की वजह कॅरिअर की पसंद थोपी जाना, मानसिक अवसाद, फेल होने का डर, आर्थिक समस्या आदि है। नौकरी खोने, आर्थिक तंगी, दोस्त खोने का डर, सामाजिक डर अवसाद और आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ती है। डिप्रेशन और एंजायटी से यह समस्या बढ़ जाती है। जिनमें तनाव झेलने की क्षमता कम होती है वे जरा सी आर्थिक तंगी, नौकरी छूटने का डर, सामाजिक दबाव, गंभीर बीमारी आते ही बेचैन दिखने लगते हैं।
भयावह हैं आंकड़े
गृह राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, एनसीआरबी की रिपोर्ट अनुसार वर्ष 2018 में 10 हजार से ज्यादा छात्रों ने आत्महत्या की। साल 2014 में 8,068 तो 2015 में 8,934 छात्रों ने जान दे दी। 2016 में 9,474 छात्रों की खुदकुशी रिपोर्ट हुई तो साल 2017 में यह आंकड़ा 9,505 पहुंच गया।
व्यक्ति अचानक शांत रहने लगे, जिन कामों में रुचि लेता था उसे छोड़ दें, लोगों के बीच में रहने वाला एकांतवास तलाशने लगे, खुद में खोया दिखने लगे, उसे यह लगे कि दुनिया बेकार है और हर बात में नकारात्मक हावी होने लगे तो उस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। ऐसे लोगों की काउंसलिंग कराई जाती है। दवाएं दी जाती हैं, जिससे मरीज डिप्रेशन से बाहर निकलने लगता है।
बचने के लिए ऐसा करें
जो चीजें अच्छी न लगें, उस पर ध्यान न दें। यह मानकर चलें कि जो चीजें अभी खो रहे हैं, भविष्य में मिल जाएगी। खुद पर भरोसा रखें। किसी ने छल किया है तो उसे भूल जाएं और नए सिरे से जिंदगी शुरू करें। नौकरी छूट गई है तो दूसरे विकल्प तलाशें। परीक्षा में फेल हुए हैं तो अगले साल बेहतर अंक लाने का प्रयास करें। मनपसंद संगीत सुनें, पेंटिंग करें, अन्य जो काम अच्छे लगते हों, उनमें खुद को व्यस्त रखें।
सदस्यों ने दी राजमंदी
सोसायटी के सभी सदस्यों ने हेल्पलाइन पर रजामंदी दी है। प्रोजेक्ट जनवरी में तैयार किया गया था। कोरोना काल में आत्महत्या के केस लगातार सामने आ रहे हैं। ऐसे में प्रयास है कि जल्द से जल्द इसे लॉन्च किया जाए। एसोसिएशन अपने स्तर पर इस व्यवस्था को शुरू करने के बाद सरकार से भी निवेदन करेगी। यदि सरकार सुसाइड हेल्पलाइन जारी करती है तो आत्महत्या के केस में कमी आएगी। – प्रो. पीके दलाल, विभागाध्यक्ष मानसिक रोग विभाग केजीएमयू एवं अध्यक्ष इंडियन साइकियाट्रिक सोसाइटी
केस- एक
अलीगंज निवासी एक अधिकारी का बेटा प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा था। सेलेक्शन न होने पर डिप्रेशन में चला गया और गुमसुम रहने लगा। एक दिन घर में आत्महत्या का प्रयास किया। मां ने उसे बचाया। युवक को डिप्रेशन से निकालने के लिए दवाएं दी गईं। लगातार काउंसलिंग हुई। दो साल बाद वह परीक्षा पास करने में सफल रहा।
केस- दो
एक युवती की शादी ऐसी जगह हुई, जहां वह नहीं रहना चाहती थी। तनाव के चलते हालत यहां तक पहुंच गए कि वह मायके आ गई और दो बार आत्महत्या का प्रयास किया। निजी चिकित्सक ने उसे केजीएमयू भेजा। करीब एक साल दवा और काउंसलिंग के बाद अब वह हरदोई स्थित ससुराल में रह रही है। वह नौकरी भी कर रही है।
कोरोना काल में आत्महत्या के मामलों में इजाफा हुआ है। इसे चुनौती मानते हुए राष्ट्रीय स्तर पर यह प्रवृत्ति रोकने के लिए इंडियन साइकियाट्रिक सोसायटी ने सुसाइड हेल्पलाइन को जल्द अमलीजामा पहनाने की कवायद शुरू की गई है। एसोसिएशन इससे शासन से भी अवगत कराएगा। यदि सरकार का साथ मिला तो देश में आत्महत्या के मामले कम किए जा सकेंगे।
हेल्पलाइन की रूपरेखा

डॉ. पीके दलाल
– फोटो : amar ujala
आत्महत्या के बढ़ते मामलों को देखते हुए इंडियन साइकियाट्रिक सोसायटी की नेशनल कमेटी की बैठक में सुसाइड हेल्पलाइन बनाने का फैसला लिया गया था। सोसायटी अध्यक्ष डॉ. पीके दलाल ने बताया कि कोरोना के बाद आत्महत्या के केसों का पुख्ता डाटा नहीं है, लेकिन जैसी सूचनाएं आ रही हैं, आंकड़े बढ़ने से इंकार नहीं किया जा सकता। अवसाद से युवाओं में यह प्रवृत्ति ज्यादा देखी गई है। यदि इस प्रवृत्ति को एक से दो मिनट के लिए टाल दिया जाए तो व्यक्ति सुसाइड की मनोदशा से बाहर निकल आता है। इसमें हेल्पलाइन कारगर साबित होगी।
प्रोजेक्ट में मेडिकल कॉलेजों के जरिये संबंधित इलाके के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, मनोचिकित्सा की पढ़ाई करने वालों को लोगों की काउंसलिंग का प्रशिक्षण दिया जाएगा। पहले चरण में मेडिकल कॉलेजों में हेल्पलाइन चलेगी, जिसका टोल फ्री नंबर दिया जाएगा। जब कोई व्यक्ति या कोई साथ में हो तो इस पर बात की जा सकती है।
काउंसलर धीरे-धीरे इस प्रवृत्ति को डालेंगे। यदि सरकार हेल्पलाइन चलाने की जिम्मेदारी ले लेगी तो इसका खुद विस्तार हो जाएगा। यह भी फायदा होगा कि मनोचिकित्सा की पढ़ाई करने वालों को नया रोजगार मिलेगा। काउंसलिंग में आने वालों का डाटा तैयार होगा। इसके आधार पर इलाज दिया जा सकेगा।
अहम भूमिका निभा सकती है हेल्पलाइन

डॉ. अलीम सिद्दीकी
– फोटो : amar ujala
मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. अलीम सिद्दीकी बताते हैं कि आत्महत्या के ख्याल आते हैं तो व्यक्ति किसी से दुख बांटने का प्रयास करता है। जब कोई रास्ता नहीं मिलता तो आत्महत्या की ओर बढ़ता है। ऐसे में हेल्पलाइन सुसाइड गेट कीपर की भूमिका निभा सकती है। इसके तहत विभिन्न कालेजों में काउंसलिंग की जाती है। इससे छात्र अवसाद से उबर पा रहे हैं।
आत्महत्या के पीछे कई वजहें
डॉ. सिद्दीकी कहते हैं कि युवाओं में आत्महत्या की वजह कॅरिअर की पसंद थोपी जाना, मानसिक अवसाद, फेल होने का डर, आर्थिक समस्या आदि है। नौकरी खोने, आर्थिक तंगी, दोस्त खोने का डर, सामाजिक डर अवसाद और आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ती है। डिप्रेशन और एंजायटी से यह समस्या बढ़ जाती है। जिनमें तनाव झेलने की क्षमता कम होती है वे जरा सी आर्थिक तंगी, नौकरी छूटने का डर, सामाजिक दबाव, गंभीर बीमारी आते ही बेचैन दिखने लगते हैं।
भयावह हैं आंकड़े
गृह राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, एनसीआरबी की रिपोर्ट अनुसार वर्ष 2018 में 10 हजार से ज्यादा छात्रों ने आत्महत्या की। साल 2014 में 8,068 तो 2015 में 8,934 छात्रों ने जान दे दी। 2016 में 9,474 छात्रों की खुदकुशी रिपोर्ट हुई तो साल 2017 में यह आंकड़ा 9,505 पहुंच गया।
अवसाद के लक्षण

व्यक्ति अचानक शांत रहने लगे, जिन कामों में रुचि लेता था उसे छोड़ दें, लोगों के बीच में रहने वाला एकांतवास तलाशने लगे, खुद में खोया दिखने लगे, उसे यह लगे कि दुनिया बेकार है और हर बात में नकारात्मक हावी होने लगे तो उस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। ऐसे लोगों की काउंसलिंग कराई जाती है। दवाएं दी जाती हैं, जिससे मरीज डिप्रेशन से बाहर निकलने लगता है।
बचने के लिए ऐसा करें
जो चीजें अच्छी न लगें, उस पर ध्यान न दें। यह मानकर चलें कि जो चीजें अभी खो रहे हैं, भविष्य में मिल जाएगी। खुद पर भरोसा रखें। किसी ने छल किया है तो उसे भूल जाएं और नए सिरे से जिंदगी शुरू करें। नौकरी छूट गई है तो दूसरे विकल्प तलाशें। परीक्षा में फेल हुए हैं तो अगले साल बेहतर अंक लाने का प्रयास करें। मनपसंद संगीत सुनें, पेंटिंग करें, अन्य जो काम अच्छे लगते हों, उनमें खुद को व्यस्त रखें।
सदस्यों ने दी राजमंदी
सोसायटी के सभी सदस्यों ने हेल्पलाइन पर रजामंदी दी है। प्रोजेक्ट जनवरी में तैयार किया गया था। कोरोना काल में आत्महत्या के केस लगातार सामने आ रहे हैं। ऐसे में प्रयास है कि जल्द से जल्द इसे लॉन्च किया जाए। एसोसिएशन अपने स्तर पर इस व्यवस्था को शुरू करने के बाद सरकार से भी निवेदन करेगी। यदि सरकार सुसाइड हेल्पलाइन जारी करती है तो आत्महत्या के केस में कमी आएगी। – प्रो. पीके दलाल, विभागाध्यक्ष मानसिक रोग विभाग केजीएमयू एवं अध्यक्ष इंडियन साइकियाट्रिक सोसाइटी
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हेल्पलाइन की रूपरेखा
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