भारत-चीन के बीच वार्ता
– फोटो : ANI (File)
सार
- पूर्व विदेश सचिव शशांक ने दी सलाह, झुकना भी ठीक नहीं
- फिंगर इलाके से मोर्चा छोड़ने के पक्ष में नहीं है चीन
- डोकलाम की तरह स्थायी सैन्य निगरानी संरचना की तैयारी
- सैन्य, कूटनीतिक और शिखर नेतृत्व स्तर से हो सकते हैं प्रयास
विस्तार
लद्दाख में भारत-चीन के बीच में लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की वार्ता बहुत सकारात्मक माहौल में हुई है। वार्ता के निष्कर्ष ने विवाद सुलझने की उम्मीद भी जगाई है, लेकिन सौदेबाजी के पूरे आसार हैं।
सैन्य और कूटनीतिक सूत्र बताते हैं कि भारतीय क्षेत्र में आकर जमे चीन के सैनिक फिंगर इलाके में डोकलाम की तरह स्थायी निगरानी मैकेनिज्म खड़ा करना चाहते हैं। ऐसे में विवाद सुलझने में समय लग सकता है।
हालांकि पूर्व विदेश सचिव शशांक का मानना है कि चीन के साथ भारत को सद्भावपूर्ण कूटनीतिक रिश्ते को अहमियत देनी चाहिए। शिखर नेतृत्व के बीच में भी चर्चा, प्रयास, कूटनीतिक पहल होनी चाहिए, लेकिन भारत झुकना नहीं चाहिए।
अब रखना चाहते हैं निगरानी
मेजर जनरल (रिटा.) लखविंदर सिंह का कहना है कि चीन के सैनिक भारतीय इलाके में आकर बैठ गए हैं। मेजर जनरल का कहना है कि चीनी सैनिक पहले से भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करते रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ समय से सैन्य अधिकारी भारतीय क्षेत्र में आने के बाद जिद दिखाने लगे हैं।
सैन्य सूत्र बताते हैं कि फिंगर-4 के जिस भारतीय क्षेत्र में चीनी सैनिक जमे हैं, वहां से दौलत बेग ओल्डी हवाई अड्डे पर नजर रखी जा सकती है। दौलत बेग हवाई अड्डे को वायुसेना ने उन्नत बनाया है।
अब यहां सुखोई-30 एमके आई फाइटर जेट, सी-130 जे हरक्युलिस ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट उतर सकता है। प्राप्त जानकारी के अनुसार चीन की मंशा फिंगर 4 से 8 फिंगर क्षेत्र के बीच में काबिज होकर स्थायी सैन्य निगरानी तंत्र खड़ा करने की है।
ऐसा ही चीन ने डोकलाम में भी किया। वहां 73 दिन तक भारतीय सैनिकों के साथ गतिरोध बने रहने के बाद चीन ने सड़क बनाने का काम रोक दिया, लेकिन थोड़ा पीछे हटकर व्यापक सैन्य निर्माण कार्य को पूरा कर लिया है।
सेना मुख्यालय के ब्रिगेडियर रैंक के अधिकारी के अनुसार चीन के सुरक्षा बल वहां से भारत के नार्थ-ईस्ट को जोड़ने वाली सड़क तक पूरी निगाह रख सकते हैं।
पैंगोंग त्सो और गलवां घाटी
यह क्षेत्र ठंड के रेगिस्तान के नाम से जाना जाता है। पैंगोंग झील और गलवां क्षेत्र में भारत और चीन के बीच में सीमा का स्पष्ट निर्धारण नहीं है।
भारतीय क्षेत्र के गावों में रहने वाले लोगों के चरागाह तक इन दिनों चीनी सेना के कब्जे में हैं। लद्दाख क्षेत्र में यह इलाका करीब 4300 मीटर की ऊंचाई पर है।
यहां दूरसंचार की सुविधा भी नहीं है और बताते हैं कहीं-कहीं गांववासियों को इसके लिए काफी दूर तक चलकर आना पड़ता है।
सेना मुख्यालय के सूत्र के अनुसार जहां इस समय तनाव की स्थिति है, उसके आस-पास के क्षेत्र में इस समय दूर संचार सेवाएं और भी सीमित हैं।
चीन तक गलत संदेश गया …अब बन गया नाक का सवाल
विदेश मामलों के जानकार और पत्रकार रंजीत कुमार का भी कहना है कि भारत-चीन के बीच में बढ़ी गलतफहमी इसका कारण हो सकती है। वे लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने और इसका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ढिंढोरा पीटे जाने को अच्छा नहीं मानते।
शशांक भी मानते हैं कि चीन अमेरिका के बहुत करीब जाने से चिढ़ा होगा और अब यह नाक का सवाल बनता जा रहा है। शशांक कहते हैं कि दोनों तरफ की मीडिया रिपोर्ट को देखिए तो उससे भी लगता है कि लद्दाख में चीन की घुसपैठ नाक का सवाल बन रही है।
वह कहते हैं कि इस तरह की मीडिया रिपोर्ट का भी बड़ा असर पड़ता है। पश्चिमी देश इसमें मजे लेते हैं। उन्हें भारत-चीन के बीच बढ़ रहा विवाद भारत-पाकिस्तान की तरह लगने लगा है।
शशांक कहते हैं कि ऐसी स्थिति में पश्चिमी देश खुश भी होते हैं, क्योंकि उनका रक्षा और सैन्य क्षेत्र का कारोबार फलता फूलता है।
भारत और चीन के बीच में आ रहा है अमेरिका का संबंध
भारत और चीन की मीडिया रिपोर्ट पर गौर करें तो बीच के रिश्ते में अमेरिका का जिक्र काफी आ रहा है। सिंगुआ विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ किआन फेंग के हवाले से ग्लोबल टाइम्स में छपी रिपोर्ट भी ऐसी ही आशंकाओं को बल देती है।
शशांक भी कहते हैं कि राष्ट्रपति ट्रंप और प्रधानमंत्री की दोस्ती, दोनों नेताओं में जारी संवाद, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और अमेरिका के रक्षा मंत्री मार्क एस्पर, विदेश मंत्री माइक पोम्पियो और एस जयशंकर तथा विदेश स्तरीय, राजदूत स्तर के संवाद के मजबूत होते फोरम चीन की परेशानी बढ़ा रहे हैं।
उन्हें लग रहा है कि भारत के पास अब तेजी से उन्नत सैन्य संसाधन आएंगे, अमेरिकी फौज के साथ तालमेल बढ़ेगा और एशिया में चीन के प्रभुत्व के लिए यह खतरा हो सकता है। वैसे भी चीन और अमेरिका में व्यापार समेत कई मोर्चे पर तनाव बढ़ता जा रहा है।
बिना शर्त चीन की सेना भारत का इलाका खाली करे तो बड़ी बात
सैन्य रणनीतिकारों, कूटनीति के जानकारों को एक आशंका सताने लगी है। सबका मानना है कि 13 राउंड की सैन्य अधिकारियों के बीच वार्ता हो चुकी है। इसमें तीन राउंड मेजर जनरल स्तर की हैं। एक राउंड लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की बातचीत है।
लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की बातचीत से पहले भारत और चीन के विदेश सचिव स्तर की वार्ता हुई थी। विशेषज्ञों का मानना है कि निश्चित रूप से लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की वार्ता में राजनीतिक नेतृत्व का संदेश भी सम्मिलित रहा होगा।
बताते हैं जिस तरह के संकेत आ रहे हैं, यदि बिना शर्त चीन की सेना भारतीय क्षेत्र को खाली कर दे तो बड़ी बात होगी। माना जा रहा है कि बिना सौदेबाजी के बात बन जाने की संभावना कम है।
चीन की सेनाएं लद्दाख क्षेत्र में अपनी मौजूदगी का भी दबाव बनाए रख सकती हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि पेंचीदगियां थोड़ी बढ़ी हैं। हालांकि शीर्ष नेतृत्व पर भरोसा है और समय के साथ समाधान निकल आने की उम्मीद है।
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