न्यूज़ डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Updated Mon, 15 Jun 2020 03:01 PM IST
कोरोना काल में आम लोगों की कैसी बदली जिंदगी
– फोटो : AMAR UJALA
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कोरोना वायरस का तांडव शुरू हुए पांच महीने से ज्यादा हो चुके है। भारत में कोरोना से लड़ने के लिए 25 मार्च से लॉकडाउन लगाया गया था। लॉकडाउन को चार बार संपूर्ण तरीके से देशभर में लगाया गया लेकिन चौथी बार ग्रीन जोन में सरकार की ओर से कुछ रियायतें दी गईं। हालांकि अभी तक संक्रमण में कमी के आसार नहीं दिख रहे हैं।
लॉकडाउन पांच और अनलॉक-1 को देश में एकसाथ लागू किया गया। इसके तहत देश में आर्थिक गतिविधियों के संचालन का रोडमैप बनाया गया ताकि धीमी हो चुकी अर्थव्यवस्था को संभाला जा सके। देश में कोरोना वायरस का पहला मामला 30 जनवरी को आया था, तब से लेकर अब तक महामारी ने किस तरह आम लोगों की जिंदगी को बदला है, इस पर एक नजर डालते हैं।
बदले हुए लोग और बदला हुआ आचरण
- सैनिटाइजर दुकानों से खत्म होने लगे और रास्तों, सीढ़ियों की सीलिंग और रैलिंग को फिनाइल से साफ किया जाने लगा।
- हर कोई महामारी विशेषज्ञ की भूमिका निभाने लगा।
- फ्लैटर्न दि कर्व, डबलिंग रेट, एन-95 मास्क, रेड जोन, कॉन्टैक्ट लेस सर्विस जैसे शब्द लोगों की जुबान पर चढ़ गए हैं। इसी के साथ बढ़ा है महामारी से बचने के उपायों का पालन।
- कोरोना के नए-नए लक्षणों को लेकर बातचीत होने लगी जैसे: सुगंध ना आना, पैर के अंगूठे का रंग बदल जाना।
- कभी-कभी स्वस्थ लोगों को चिंता बढ़ने लगी कि क्या वो एसिम्प्टोमैटिक हैं।
- लोगों के मन में कई सवाल आने लगे जैसे- छींक का सफर, नजदीकी अस्पताल की दूरी, वहां कोविड-19 के बिस्तर, इंश्योरेंस कवर।
- क्या पिज्जा खाना सही रहेगा, इससे डिलिवरी बॉय की जिंदगी को तो खतरा नहीं होगा।
- क्या दादा-दादी के घर जाने से उनमें संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है।
- उन लोगों के साथ दोस्ती कैसे रखी जाए जिन्होंने घरेलू सहायकों को पैसा देना बंद कर दिया है।
- इस दौरान दरवाजे और लिफ्ट का बटन ना छूने की पूरी कोशिश की।
- छह फीट या दो मीटर की सामाजिक दूरी बनाए रखने की पूरी कोशिश।
- हाथों से बार-बार चेहरा ना छूना, कभी-कभी घर से निकलने के बाद मास्क पहनना भूल जाना।
किस पर वास्तव में भरोसा कर सकते हैं?
- कोरोना के आने पर कहा गया कि ज्यादा ठंड होने की वजह से ज्यादा फैल रहा है
- फिर मार्च में कहा गया कि भारतीय दो हफ्ते में कोरोना के खिलाफ लड़ लेंगे।
- इसके बाद फिर कहा गया कि गर्मी की तपन से कोरोना वायरस मर जाएगा।
- इसी बीच तेजी से व्हाट्सएप मैसेज वायरल होने लगे, कितने झूठ, कितने सच, पता नही।
- क्या मुंबई में सेना तैनात होगी, हल्दी से नहाने से मदद मिलेगी, कोरोना चीन का जैविक हथियार है जैसी अफवाहें फैलने लगी।
- देश में वायरस से ज्यादा अफवाहों के फैलने का दौर शुरू हुआ।
- कौन कोरोना पॉजिटिव है और क्यों है, ये समझना मुश्किल हो गया।
- आरोग्य सेतु एप को लेकर सरकार ने कई बार सफाई दी कि डाटा कहीं नहीं जाएगा।
उचित दूरी के साथ सामाजिक मेल-जोल
- महामारी की वजह से घर में बैठे दादी-दादी और माता-पिता ने वीडियो कॉलिंग, फेसबुक और नई तकनीकी सीखी।
- ऑनलाइन गेम को लोकप्रियता ज्यादा मिलने लगी, लूडो, ताश, मैच-3, क्विजर जैसे खेल ज्यादा खेले जाने लगे।
- लॉकडाउन में बिना केक और कैलोरीज के वीडियो कॉलिंग के जरिए बर्थ-डे और सालगिरह मनाई जाने लगीं।
- लोगों के मन में विचार आया कि इंटरनेट नहीं होता तो लॉकडाउन में समय बिताने के लिए क्या विकल्प होते।
लाइक, कॉमेंट और शेयर
- दोस्तों ने एक साथ मिलकर कई सारे नए पॉडकास्ट शुरू किए।
- इंस्टालाइव, टिक-टॉक डांस ऑफ, ट्विटर अंताक्श्री और वेबिनार मनोरंजन के नए माध्यम बने।
- लोगों ने ग्रुप चैट या वीडियो कॉल के दौरान बैठने और अच्छे दिखने के तरीके को सीखा।
- लॉकडाउन में खाली समय का सदुपयोग कर कई लोगों ने अपने यू-ट्यूब चैनल बना लिए।
ऑनलाइन स्ट्रीमिंग सेवा का लुफ्त
- टेलीविजन पर रामायण ने दादा-दादी और माता-पिता के पुराने दिन याद दिला दिए
- ढेरों पुराने धारावाहिक दूरदर्शन सहित कई चैनलों पर पुन:प्रसारित होने लगे।
- दर्शकों ने कई-कई वेब सीरिज एक ही बार में पूरी देख ली।
- लॉकडाउन के दौरान ओटीटी एप्लीकेशंस पर एक से बढ़कर एक बेहतरीन फिल्में और सीरीज देखी गईं।
वर्चुएल तरीके से दफ्तर का काम
- जूम कॉल्स के माध्यम से दफ्तरों की बैठकें होने लगी।
- ई-मेल के जरिए नोटिफिकेशन जारी होने लगे और काम का दायरा बढ़ गया।
- घर में काम करने के दौरान काम का बोझ पहले से थोड़ा ज्यादा हो गया।
- दफ्तरों में कर्मचारी तय समय से ज्यादा काम करने लग गए।
- फॉर्मल कपड़े अलमारी में सिमट कर रह गए।
- कुछ लोगों ने वर्चुएल तरीके में भी ऑफिस में बेहतरीन काम करने के विकल्प खोजे।
सार
- कोरोना महामारी ने जीने का तरीका कई मायनों में बदला
- लोगों ने उचित दूरी के साथ सामाजिक मेल-जोल बनाए रखा
- लॉकडाउन के खाली समय को लोगों ने माना अवसर, बनाए यू-ट्युब चैनल
विस्तार
कोरोना वायरस का तांडव शुरू हुए पांच महीने से ज्यादा हो चुके है। भारत में कोरोना से लड़ने के लिए 25 मार्च से लॉकडाउन लगाया गया था। लॉकडाउन को चार बार संपूर्ण तरीके से देशभर में लगाया गया लेकिन चौथी बार ग्रीन जोन में सरकार की ओर से कुछ रियायतें दी गईं। हालांकि अभी तक संक्रमण में कमी के आसार नहीं दिख रहे हैं।
लॉकडाउन पांच और अनलॉक-1 को देश में एकसाथ लागू किया गया। इसके तहत देश में आर्थिक गतिविधियों के संचालन का रोडमैप बनाया गया ताकि धीमी हो चुकी अर्थव्यवस्था को संभाला जा सके। देश में कोरोना वायरस का पहला मामला 30 जनवरी को आया था, तब से लेकर अब तक महामारी ने किस तरह आम लोगों की जिंदगी को बदला है, इस पर एक नजर डालते हैं।
बदले हुए लोग और बदला हुआ आचरण
- सैनिटाइजर दुकानों से खत्म होने लगे और रास्तों, सीढ़ियों की सीलिंग और रैलिंग को फिनाइल से साफ किया जाने लगा।
- हर कोई महामारी विशेषज्ञ की भूमिका निभाने लगा।
- फ्लैटर्न दि कर्व, डबलिंग रेट, एन-95 मास्क, रेड जोन, कॉन्टैक्ट लेस सर्विस जैसे शब्द लोगों की जुबान पर चढ़ गए हैं। इसी के साथ बढ़ा है महामारी से बचने के उपायों का पालन।
- कोरोना के नए-नए लक्षणों को लेकर बातचीत होने लगी जैसे: सुगंध ना आना, पैर के अंगूठे का रंग बदल जाना।
- कभी-कभी स्वस्थ लोगों को चिंता बढ़ने लगी कि क्या वो एसिम्प्टोमैटिक हैं।
- लोगों के मन में कई सवाल आने लगे जैसे- छींक का सफर, नजदीकी अस्पताल की दूरी, वहां कोविड-19 के बिस्तर, इंश्योरेंस कवर।
- क्या पिज्जा खाना सही रहेगा, इससे डिलिवरी बॉय की जिंदगी को तो खतरा नहीं होगा।
- क्या दादा-दादी के घर जाने से उनमें संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है।
- उन लोगों के साथ दोस्ती कैसे रखी जाए जिन्होंने घरेलू सहायकों को पैसा देना बंद कर दिया है।
- इस दौरान दरवाजे और लिफ्ट का बटन ना छूने की पूरी कोशिश की।
- छह फीट या दो मीटर की सामाजिक दूरी बनाए रखने की पूरी कोशिश।
- हाथों से बार-बार चेहरा ना छूना, कभी-कभी घर से निकलने के बाद मास्क पहनना भूल जाना।
किस पर वास्तव में भरोसा कर सकते हैं?
- कोरोना के आने पर कहा गया कि ज्यादा ठंड होने की वजह से ज्यादा फैल रहा है
- फिर मार्च में कहा गया कि भारतीय दो हफ्ते में कोरोना के खिलाफ लड़ लेंगे।
- इसके बाद फिर कहा गया कि गर्मी की तपन से कोरोना वायरस मर जाएगा।
- इसी बीच तेजी से व्हाट्सएप मैसेज वायरल होने लगे, कितने झूठ, कितने सच, पता नही।
- क्या मुंबई में सेना तैनात होगी, हल्दी से नहाने से मदद मिलेगी, कोरोना चीन का जैविक हथियार है जैसी अफवाहें फैलने लगी।
- देश में वायरस से ज्यादा अफवाहों के फैलने का दौर शुरू हुआ।
- कौन कोरोना पॉजिटिव है और क्यों है, ये समझना मुश्किल हो गया।
- आरोग्य सेतु एप को लेकर सरकार ने कई बार सफाई दी कि डाटा कहीं नहीं जाएगा।
उचित दूरी के साथ सामाजिक मेल-जोल
- महामारी की वजह से घर में बैठे दादी-दादी और माता-पिता ने वीडियो कॉलिंग, फेसबुक और नई तकनीकी सीखी।
- ऑनलाइन गेम को लोकप्रियता ज्यादा मिलने लगी, लूडो, ताश, मैच-3, क्विजर जैसे खेल ज्यादा खेले जाने लगे।
- लॉकडाउन में बिना केक और कैलोरीज के वीडियो कॉलिंग के जरिए बर्थ-डे और सालगिरह मनाई जाने लगीं।
- लोगों के मन में विचार आया कि इंटरनेट नहीं होता तो लॉकडाउन में समय बिताने के लिए क्या विकल्प होते।
लाइक, कॉमेंट और शेयर
- दोस्तों ने एक साथ मिलकर कई सारे नए पॉडकास्ट शुरू किए।
- इंस्टालाइव, टिक-टॉक डांस ऑफ, ट्विटर अंताक्श्री और वेबिनार मनोरंजन के नए माध्यम बने।
- लोगों ने ग्रुप चैट या वीडियो कॉल के दौरान बैठने और अच्छे दिखने के तरीके को सीखा।
- लॉकडाउन में खाली समय का सदुपयोग कर कई लोगों ने अपने यू-ट्यूब चैनल बना लिए।
ऑनलाइन स्ट्रीमिंग सेवा का लुफ्त
- टेलीविजन पर रामायण ने दादा-दादी और माता-पिता के पुराने दिन याद दिला दिए
- ढेरों पुराने धारावाहिक दूरदर्शन सहित कई चैनलों पर पुन:प्रसारित होने लगे।
- दर्शकों ने कई-कई वेब सीरिज एक ही बार में पूरी देख ली।
- लॉकडाउन के दौरान ओटीटी एप्लीकेशंस पर एक से बढ़कर एक बेहतरीन फिल्में और सीरीज देखी गईं।
वर्चुएल तरीके से दफ्तर का काम
- जूम कॉल्स के माध्यम से दफ्तरों की बैठकें होने लगी।
- ई-मेल के जरिए नोटिफिकेशन जारी होने लगे और काम का दायरा बढ़ गया।
- घर में काम करने के दौरान काम का बोझ पहले से थोड़ा ज्यादा हो गया।
- दफ्तरों में कर्मचारी तय समय से ज्यादा काम करने लग गए।
- फॉर्मल कपड़े अलमारी में सिमट कर रह गए।
- कुछ लोगों ने वर्चुएल तरीके में भी ऑफिस में बेहतरीन काम करने के विकल्प खोजे।
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