मार्केट का एक दृश्य।
– फोटो : Amar Ujala (File)
ख़बर सुनें
सार
- कार्यस्थल में बदलाव को अपेक्षित मान रहे उद्यमी, लेकिन इस कारण बढ़ सकती है लागत, बढ़ सकते हैं जरूरी चीजों के दाम
- श्रमिकों के स्वास्थ्य को ज्यादा अहमियत देने की राह पर बढ़ रहीं कंपनियां
- सीमेंट-स्टील उद्योग में 50 फीसदी क्षमता के साथ कामकाज शुरू
विस्तार
आईटी और बैंकिंग सेक्टर में वर्क फ्रॉम होम कल्चर को बढ़ावा देकर काम करने की कोशिश की जा रही है, तो शिक्षा क्षेत्र में ऑनलाइन क्लास को विकल्प के रूप में आजमाया जा रहा है। औद्योगिक क्षेत्रों में भी सीमित कार्यबल के साथ कामकाज शुरू हो चुका है।
बाजार के विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना के कारण काम करने की संस्कृति में लंबे समय तक बड़ा बदलाव देखने को मिलने वाला है। इन बदलावों की कीमत ग्राहकों को चुकानी पड़ सकती है, लेकिन इसके बाद भी इन बदलावों के साथ आगे बढ़ने की कोशिश की जा सकती है।
औद्योगिक संगठन फिक्की के सूक्ष्म, लघु और माध्यम उद्योग (MSME) वर्ग के चेयरमैन संजय भाटिया ने अमर उजाला को बताया कि कोरोना संकट के बीच भी कामकाज जारी रखने के लिए उद्योगों को खुद को पुनर्संयोजित (रि-कैलिब्रेट) करना पड़ेगा।
इसके लिए कार्यस्थल पर मशीनों को उचित दूरी पर लगाना पड़ेगा, एक बार में सीमित संख्या के कार्यबल के साथ काम करना पड़ेगा।
परिस्थितियों से तालमेल बिठाने के लिए विभिन्न उद्योगों में ऑटोमेशन की गति भी बढ़ सकती है। अचानक किया जाने वाला यह बदलाव पहले से ही पूंजी की कमी से जूझ रहे उद्योगों को मुश्किल में डाल सकता है।
इसका सीधा असर उत्पादों की कीमतों पर भी पड़ेगा, जिसका सीधा असर ग्राहकों पर पड़ सकता है। रोजगार में कमी, क्रय-शक्ति में ह्रास के बीच मांग में आई कमी के बीच इससे निबटना मुश्किल हो सकता है, लेकिन इसके बाद भी इस तरह के कुछ बदलावों के साथ आगे बढ़ने की कोशिश की जा सकती है।
हिंदुस्तान टिन वर्क्स लिमिटेड के चेयरमैन संजय भाटिया के मुताबिक, बड़े उद्योगों को कोरोना के साथ तालमेल बिठाने में ज्यादा मुश्किल नहीं आ रही है। बड़ी पूंजी लगाने की क्षमता, कार्य स्थल पर पर्याप्त जगह होने और पहले से ही पर्याप्त ऑटोमेशन होने की वजह से इन उद्योगों में आसानी से बदलाव किया जा रहा है, या किया जा चुका है।
लेकिन मध्यम, लघु और सूक्ष्म उद्योग इससे निबटने में भारी मुश्किल का सामना कर रहे हैं। उनके कार्य स्थल के बहुत छोटे होने के कारण वहां सोशल डिस्टेंसिंग के साथ काम करना भी संभव नहीं है।
इनकी आर्थिक क्षमता भी इतनी नहीं है कि ये अपनी जगहों का आसानी से बदलाव कर सकें। यही कारण है कि कोरोना का सबसे गहरा असर इसी क्षेत्र पर पड़ा है।
बड़ा अवसर भी लेकर आया कोरोना
सामान्यत: ऐसी स्थितियों में एक बाजार दूसरी जगह शिफ्ट होता है। यह इस समय भी हो रहा है।
मैनेजमेंट की सोच में करना होगा बदलाव
आर्थिक हितों के ऊपर श्रमिकों के शारीरिक स्वास्थ्य और उनकी अन्य सुविधाओं को ध्यान देना पड़ेगा। अगर उद्योग ऐसा करने में सफल रहेंगे तो इस बदलाव के बाद भी वे चलते रहेंगे, अन्यथा लंबे समय में उन्हें नुक्सान उठाना पड़ेगा।
लॉकडाउन के दौरान निर्माण गतिविधियों के ठप पड़ जाने के कारण सीमेंट और स्टील उद्योग की कार्य क्षमता बहुत प्रभावित हुई थी, लेकिन अब तकरीबन 50-60 फीसदी क्षमता के साथ इनमें दोबारा कामकाज शुरू हो चुका है।
जिन आद्योगिक स्थलों पर कामगरों की सुविधाओं का ख्याल रखा गया है वे आज भी काम कर रहे हैं, जबकि जहां पर श्रमिकों को कोरोना काल में असुरक्षा महसूस हुई, वहां श्रमिकों की कमी हो गई है।
इसका असर उनके उत्पादन पर पड़ा है।
Discussion about this post