ख़बर सुनें
सार
आईपीएस बनाम सीएपीएफ मुद्दे पर अमर उजाला डॉट कॉम ने दोनों पक्षों से विस्तृत बातचीत की है। कई मौजूदा अफसर तो कुछ पूर्व अधिकारियों ने अपनी बात रखी है…
विस्तार
भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) दोनों ही सरदार पटेल को मानते हैं। दोनों ही सेवाओं के अधिकारी अपनी ड्यूटी भी अच्छे से कर रहे हैं, बावजूद इसके अब आईपीएस और कैडर अधिकारी आमने सामने आ गए हैं।
अदालत में मामला है। सोशल मीडिया पर वॉर छिड़ी है। जमकर भड़ास निकाली जा रही है। यहां तक कि यूपी और बीएसएफ के एक पूर्व डीजी ने तो यह कहते हुए इस मामले में टिप्पणी करने से ही मना कर दिया कि यह विवाद तो निम्न स्तर पर चला गया है।
यह मसला इतने निम्न स्तर पर चला गया है कि मैं इस पर टिप्पणी नहीं करूंगा- पूर्व आईपीएस प्रकाश सिंह
दूसरी ओर, सीएपीएफ अफसर बताते हैं कि आईपीएस की प्रतिनियुक्ति के प्रावधान केवल इस कारण से आस्तित्व में आए, क्योंकि पूर्व के दशकों में केंद्रीय बलों के वरिष्ठ पदों को भरने के लिए अधिकारी नहीं थे।
इन बलों में अधिकारियों की भर्ती 60 के दशक में आरम्भ हुई थी। जहां तक रिक्रूटमेंट रूल का प्रश्न है, तो ये स्वयं आईपीएस अधिकारियों ने ही बनाए हैं।
इस मसले पर अमर उजाला डॉट कॉम ने दोनों पक्षों से विस्तृत बातचीत की है। कई मौजूदा अफसर तो कुछ पूर्व अधिकारियों ने अपनी बात रखी है; इनमें पूर्व डीजी प्रकाश सिंह, पूर्व आईपीएस प्रदीप भारद्वाज और सीएपीएफ के पूर्व आईजी एसएस संधू व कई दूसरे अधिकारी शामिल हैं।
अखिल भारतीय सेवा का हिस्सा होने के कारण आईपीएस लीडरशिप वाली जगह पर होते हैं। वह चाहे केंद्र, राज्य या सीएपीएफ हो। आईपीएस ने डीआईजी व कमांडेंट के पद पर आना कम किया तो सीएपीएफ अफसरों को आगे बढ़ने का मौका मिला। सीनियर पोजीशन या लीडरशिप के लिए सरकार को आईपीएस का पक्ष तर्क के साथ कोर्ट में रखना चाहिए। कल को हम आईएएस का रोल मांगने लगे तो क्या होगा। देश को दिग्भ्रमित करना अच्छी बात नहीं। सरदार पटेल ने इन सेवाओं का जो मजबूत ढांचा तैयार किया था, वह इन हरकतों से टूट जाएगा। ये देश के लिए अच्छा नहीं है।
– पूर्व आईपीएस प्रदीप भारद्वाज
क्या हैं आईपीएस और सीएपीएफ आरोप-प्रत्यारोप
- आईपीएस कहते हैं कि हमारे लिए केंद्रीय प्रतिनियुक्ति का प्रावधान सीएपीएफ के रिक्रूटमेंट नियमों में है। इससे केंद्र एवं राज्य सुरक्षा बलों में अच्छा तालमेल बना रहता है।
- सीएपीएफ के अनुसार, केंद्रीय पुलिस बल सरदार पटेल की परिकल्पना थी। शुरू में आईपीएस प्रतिनियुक्ति पर आए, क्योंकि पूर्व के दशकों में केंद्रीय बलों में वरिष्ठ पदों को भरने के लिए अधिकारी नहीं थे।
- आईपीएस: सीएपीएफ के रिक्रूटमेंट नियमों में 20 से 25 फीसदी DIG, 50 फीसदी IG एवं 75 फीसदी ADG रैंक के पदों पर IPS अधिकारी प्रतिनियुक्ति पर आते हैं। अब वे इस प्रार्थना के साथ दिल्ली हाई कोर्ट में संघर्षरत हैं कि DIG एवं IG पदों पर IPS अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति बंद हो।
- सीएपीएफ का पक्ष है कि वे कोर्ट में इसलिए नहीं गए कि आईपीएस का डेपुटेशन बंद हो। अदालत के निर्णय में सीएपीएफ को 1986 से संगठित सेवा का दर्जा मिला है, जिसे पूर्णता के साथ लागू करने में आईपीएस बाधा पैदा कर रहे हैं। 2008 में गृह मंत्रालय के एसएसआईएस जो कि आईपीएस थे, उन्होंने माना कि यदि सीएपीएफ को संगठित सेवा का दर्जा मिला तो आईपीएस आईजी रैंक तक डेपुटेशन पर नही जा सकेंगे।
- आईपीएस: छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार 01.01.2006 से एनएफएफयू केवल ओजीएएस के लिए लागू किया गया था। सीएपीएफ के राजपत्रित अधिकारियों ने इसका लाभ पाने के लिए खुद को ओजीएएस घोषित करने की मांग की।इ नकी प्रबंधन क्षमता बनाये रखने के लिए सरकार ने इसे स्वीकार नही किया।
- सीएपीएफ: यह स्पष्ट हो चुका है कि यह हमारे विरुद्ध एक साजिश थी। न्यायालय ने इस संबंध में स्पष्ट निर्णय दे दिया है। एनएफएफयू भी 2006 से लागू है, यह विचारणीय है कि क्या एक ही आदेश के तहत दो प्रकार के एनएफएफयू लागू किए जा सकते हैं, जैसा कि सीएपीएफ अधिकारियों के साथ किया जा रहा है। जोखिम वाली लंबी ड्यूटी अनुभव के चलते वे अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ होते हैं, क्या उन्हें उच्च पदों पर पदोन्नति का अधिकार नहीं है। इस सीएपीएफ में डीआईजी IPS के लिए 100 से अधिक पद 10 वर्ष से भी अधिक समय से खाली पड़े हैं। दूसरी ओर कैडर अधिकारी 29-30 वर्ष की सेवा में DIG पद की पदोन्नति का इंतजार कर रहे हैं।
- आईपीएस: मंत्रालय के आदेश के विरूद्ध सीएपीएफ ने दिल्ली उच्च न्यायालय में इस आशय से मुकदमा किया कि उन्हें भी एनएफएफयू की सुविधाऐं दें। अदालत ने यह दर्जा दे दिया। उच्चतम न्यायालय ने भी स्पष्ट किया है कि सीएपीएफ अफसरों को यह दर्जा मिलने से आईपीएस प्रतिनियुक्तियों पर असर नहीं पड़ेगा।
- सीएपीएफ: न्यायालय के निर्णयों में यह स्पष्ट है कि सीएपीएफ 1986 से संगठित सेवा है। एनएफएफयू तो 2008 में आया है। क्या न्यायालय की तरफ से यह कहा गया है कि यह अलग तरह का ओजीएएस होगा।
- आईपीएस: कुछ कैडर अधिकारियें ने दिल्ली उच्च न्यायालय में रिक्रूटमेंट नियमों को संशोधित करने का मुकदमा दायर किया है। सीएपीएफ में डीआईजी एवं आईजी पदों पर आईपीएस की प्रतिनियुक्ति न हो, यह मांग उच्चतमम न्यायालय के दिनांक 18.10.2019 के आदेश के विपरीत है।
- सीएपीएफ का कहना है कि किसी भी सेवा की किसी परिस्थिति में बदलाव होने पर यह आवश्यक है कि उस के सेवा नियमों व भर्ती नियमों में बदलाव किया जाए, पर CAPF के मामले में ऐसा नही किया जा रहा है। हमारे लिए न सर्विस नियम और न भर्ती नियम बदल रहे हैं।
- आईपीएस: सहयोग और समन्वय में आईपीएस महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्हें आंतरिक सुरक्षा का जमीनी एवं राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य हासिल है। प्रतिनियुक्ति बंद हो गईं तो देश की आंतरिक सुरक्षा और कानून व्यवस्था पर असर पडे़गा।
- सीएपीएफ: IG के पद से ऊपर भी DG, SDG व ADG के पदों पर आईपीएस ही रहते है। बहुत जगह पर आईपीएस आईजी हैं, वहां समन्वय जैसी कोई समस्या नहीं है। सीआरपीएफ के कश्मीर व मणिपुर सेक्टर में डीआईजी पद पर आईपीएस आना ही नहीं चाहते हैं।
- आईपीएस: इस मुद्दे का संबंध सीएपीएफ के 10 लाख कर्मियों से न होकर, मात्र लगभग 10 हजार उन राजपत्रित अधिकारियों से है जिन्हें एनएफएफयू पहले ही दिया जा चुका है। सरकार को इसे अदालत से खारिज कराने की जरूरत है।
- सीएपीएफ: यह नेतृत्व का मामला है। कैडर अफसर, बल की आवश्कताओं को देखते हुए बेहतर काम कर सकते हैं। हमें कानूनी लड़ाई के कारण प्रताड़ित करने का प्रयास किया जा रहा है।
Discussion about this post