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जलवायु परिवर्तन का प्रभाव ही है कि तय समय से पहले ही तूफान बनने लगे हैं। वैज्ञानिकों को चिंता है कि तूफान, बढ़ती गर्मी जैसी बदलती जलवायु परिस्थितियों में टिड्डी दल के आक्रमण जैसी घटनाएं आने वाले समय में और भी घातक हो सकती हैं।
विशेषज्ञों के एक अंतरराष्ट्रीय समूह ने इस संबंध में चेतावनी भी दी है। उनका कहना है कि जलवायु परिवर्तन से होने वाली हीटवेव, उष्णकटिबंधीय तूफान और गर्मी के मौसम का दुष्प्रभाव इस वर्ष और आने वाले वर्षों में और भी अधिक भयावह हो सकता है। आइए एक-एक करके जानते हैं क्या और क्यों हैं वैज्ञानिकों की ये चिंताएं…
दरअसल, उत्तरी गोलार्ध के इलाके अभी साल के उन महीनों से गुजर रहे हैं, जिनमें मौसम अपनी चरम स्थितियों के कारण बड़े जोखिम लाता है। हाल के कुछ वर्षों में देखा गया है कि उष्णकटिबंधीय तूफान अपनी तय समय या तारीख से पहले ही बन जाता है। चूंकि भारत और बांग्लादेश में मानसून की जून महीने से शुरू होता है। इस दौरान मई से ही हिंद महासागर में अक्सर चक्रवात पैदा होते हैं। इनकी वजह से तबाही मचती है।
यह भी पढ़ें: पश्चिम बंगालः अम्फान तूफान ने सुंदरबन में मचाई तबाही, 28 फीसदी क्षेत्र हुए बर्बाद
तेज गर्मी ने तोड़ा रिकॉर्ड
यूरोप और पूर्वी एशिया में सबसे तेज गर्मी आमतौर पर जुलाई और अगस्त के महीनों में पड़ती है। परंतु बीते साल 2019 में प्रचंड गर्मी ने कई देशों में अपना रिकॉर्ड तोड़ दिया। साल 2018 में जापान में गर्मी से जुड़ी बीमारियों की वजह से 70 हजार से ज्यादा मरीज अस्पताल में भर्ती कराए गए थे। वहीं 1032 लोगों की तपती गर्मी की वजह से जान चली गई थी। एक अनुमान के मुताबिक, अमेरिका में गर्मी की वजह से सबसे ज्यादा लोगों की मौत होती है।
2019-20 में ऑस्ट्रेलिया के जंगलों की आग से उठे धुएं और अन्य हालात के चलते दिल के 1124 मरीजों और सांस की समस्या से जूझ रहे 2027 रोगियों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था। दमा के 1305 मरीजों को आपातकालीन वार्ड में भर्ती कराना पड़ा था।
विशेषज्ञ मानते हैं कि ऊपर लिखे आंकड़े बस एक बानगी भर हैं, दुनियाभर के देशों में ऐसी छोटी-बड़ी घटनाएं होती हैं। यदि उन सभी आंकड़ों को एकत्र कर समग्र रूप में विश्लेषण करें तो जो स्थिति सामने आएगी, वह हमारे भविष्य की दृष्टि से बहुत ही भयावह होगी, जैसी कि इस समय कोरोना संकट को लेकर है।
जलवायु परिवर्तन की वजह से ही टिड्डियों को पनपने का अनुकूल माहौल मिलता है। मई महीने में टिड्डियों की दूसरी पीढ़ी का प्रजनन काल और तीसरी पीढ़ी का प्रजनन काल जून से लेकर जुलाई तक होता है। उसी वक्त फसल सत्र शुरू होता है। ऐसे में ये टिड्डियां किसानों की फसलों पर धावा बोलकर भारी आर्थिक नुकसान पहुंचाती हैं। बीते 25 वर्षों में तेजी से हुए औद्योगिक विकास और मौसम में आए बदलाव से टिड्डियों का आतंक विकाराल रूप ले चुका है।
- बढ़ रहे तूफान: वैज्ञानिकों का अनुमान है जलवायु परिवर्तन से भविष्य में तूफान और भी ताकतवर होंगे। मई 2020 में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक जलवायु परिवर्तन से तीव्रतम श्रेणी वाले तूफानों के अनुपात में हर दशक 8 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो रही है। कार्बन उत्सर्जन के कारण तूफान और भी खतरनाक हो जाते हैं।
- गर्मी में तपिश बढ़ी: साल 1980 में तापमान में उतार-चढ़ाव कभी-कभी होता था। परंतु बीते 30 सालों में तपिश का औसत बढ़ा है। दुनियाभर में गर्मियां एक सदी पहले के मुकाबले ज्यादा तपिश भरी हो गई हैं। अब दुनिया के 10 फीसदी हिस्से में बेहद तपती गर्मी पड़ती है, जबकि 1951-1980 के दौरान ऐसी गर्मी सिर्फ 0.1 या 0.2 फीसदी भूभाग में ही पड़ती थी। यूरोप में तेज गर्मी 1950 से बढ़ना शुरू हुई, जो जारी है।
- जल की कमी ने बढ़ाया जोखिम: जलवायु परिवर्तन से सूखा पड़ने की घटनाएं बढ़ रही हैं, ये और भी बढ़ेंगी। एक अनुमान के मुताबिक आने वाले छह महीनों में पूर्वी अमेरिका, लैटिन अमेरिका के बड़े हिस्से, अफ्रीका, दक्षिणपूर्वी एशिया के क्षेत्र इससे प्रभावित हो सकते हैं। केपटाउन में साल 2018 में पड़े रिकॉर्ड तोड़ सूखे से 40 लाख लोग प्रभावित हुए थे। बता दें कि मौजूदा दौर में दुनिया की 80 फीसदी आबादी पानी की किल्लत झेल रही है। कोरोना के खिलाफ जंग में बार-बार हाथ धोने के लिए पानी की कितनी ज्यादा जरूरत है यह बात किसी से छिपी नहीं है।
- अगले 30 साल में आग लगने की घटनाएं और बढ़ेंगी: जलवायु परिवर्तन से तापमान बढ़ने और सही समय पर बारिश नहीं होने की वजह से जंगलों और शहरों में लगने वाली आग की घटनाएं हाल के कुछ वर्षों में बढ़ी हैं। इससे साफ जाहिर है कि वर्ष 2000 के स्तर के मुकाबले 2050 की पर्यावरणीय परिस्थितियों में भारी अंतर होगा। नतीजतन जंगलों या शहरों में आग लगने की घटनाएं 27 फीसदी तक बढ़ सकती हैं।
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव ही है कि तय समय से पहले ही तूफान बनने लगे हैं। वैज्ञानिकों को चिंता है कि तूफान, बढ़ती गर्मी जैसी बदलती जलवायु परिस्थितियों में टिड्डी दल के आक्रमण जैसी घटनाएं आने वाले समय में और भी घातक हो सकती हैं।
विशेषज्ञों के एक अंतरराष्ट्रीय समूह ने इस संबंध में चेतावनी भी दी है। उनका कहना है कि जलवायु परिवर्तन से होने वाली हीटवेव, उष्णकटिबंधीय तूफान और गर्मी के मौसम का दुष्प्रभाव इस वर्ष और आने वाले वर्षों में और भी अधिक भयावह हो सकता है। आइए एक-एक करके जानते हैं क्या और क्यों हैं वैज्ञानिकों की ये चिंताएं…
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1. बड़ा बदलाव और बड़ा जोखिम
दरअसल, उत्तरी गोलार्ध के इलाके अभी साल के उन महीनों से गुजर रहे हैं, जिनमें मौसम अपनी चरम स्थितियों के कारण बड़े जोखिम लाता है। हाल के कुछ वर्षों में देखा गया है कि उष्णकटिबंधीय तूफान अपनी तय समय या तारीख से पहले ही बन जाता है। चूंकि भारत और बांग्लादेश में मानसून की जून महीने से शुरू होता है। इस दौरान मई से ही हिंद महासागर में अक्सर चक्रवात पैदा होते हैं। इनकी वजह से तबाही मचती है।
यह भी पढ़ें: पश्चिम बंगालः अम्फान तूफान ने सुंदरबन में मचाई तबाही, 28 फीसदी क्षेत्र हुए बर्बाद
2. दुर्दांत तूफान और तेज गर्मी का कीर्तिमान
तेज गर्मी ने तोड़ा रिकॉर्ड
यूरोप और पूर्वी एशिया में सबसे तेज गर्मी आमतौर पर जुलाई और अगस्त के महीनों में पड़ती है। परंतु बीते साल 2019 में प्रचंड गर्मी ने कई देशों में अपना रिकॉर्ड तोड़ दिया। साल 2018 में जापान में गर्मी से जुड़ी बीमारियों की वजह से 70 हजार से ज्यादा मरीज अस्पताल में भर्ती कराए गए थे। वहीं 1032 लोगों की तपती गर्मी की वजह से जान चली गई थी। एक अनुमान के मुताबिक, अमेरिका में गर्मी की वजह से सबसे ज्यादा लोगों की मौत होती है।
3. जंगल में आग लगने से बढ़ गए दिल के मरीज
2019-20 में ऑस्ट्रेलिया के जंगलों की आग से उठे धुएं और अन्य हालात के चलते दिल के 1124 मरीजों और सांस की समस्या से जूझ रहे 2027 रोगियों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था। दमा के 1305 मरीजों को आपातकालीन वार्ड में भर्ती कराना पड़ा था।
विशेषज्ञ मानते हैं कि ऊपर लिखे आंकड़े बस एक बानगी भर हैं, दुनियाभर के देशों में ऐसी छोटी-बड़ी घटनाएं होती हैं। यदि उन सभी आंकड़ों को एकत्र कर समग्र रूप में विश्लेषण करें तो जो स्थिति सामने आएगी, वह हमारे भविष्य की दृष्टि से बहुत ही भयावह होगी, जैसी कि इस समय कोरोना संकट को लेकर है।
4. टिड्डियों का प्रजनन, किसान के लिए नुकसानदायक
जलवायु परिवर्तन की वजह से ही टिड्डियों को पनपने का अनुकूल माहौल मिलता है। मई महीने में टिड्डियों की दूसरी पीढ़ी का प्रजनन काल और तीसरी पीढ़ी का प्रजनन काल जून से लेकर जुलाई तक होता है। उसी वक्त फसल सत्र शुरू होता है। ऐसे में ये टिड्डियां किसानों की फसलों पर धावा बोलकर भारी आर्थिक नुकसान पहुंचाती हैं। बीते 25 वर्षों में तेजी से हुए औद्योगिक विकास और मौसम में आए बदलाव से टिड्डियों का आतंक विकाराल रूप ले चुका है।
5. जलवायु परिवर्तन के कारण पनपे चार बड़े खतरे
- बढ़ रहे तूफान: वैज्ञानिकों का अनुमान है जलवायु परिवर्तन से भविष्य में तूफान और भी ताकतवर होंगे। मई 2020 में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक जलवायु परिवर्तन से तीव्रतम श्रेणी वाले तूफानों के अनुपात में हर दशक 8 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो रही है। कार्बन उत्सर्जन के कारण तूफान और भी खतरनाक हो जाते हैं।
- गर्मी में तपिश बढ़ी: साल 1980 में तापमान में उतार-चढ़ाव कभी-कभी होता था। परंतु बीते 30 सालों में तपिश का औसत बढ़ा है। दुनियाभर में गर्मियां एक सदी पहले के मुकाबले ज्यादा तपिश भरी हो गई हैं। अब दुनिया के 10 फीसदी हिस्से में बेहद तपती गर्मी पड़ती है, जबकि 1951-1980 के दौरान ऐसी गर्मी सिर्फ 0.1 या 0.2 फीसदी भूभाग में ही पड़ती थी। यूरोप में तेज गर्मी 1950 से बढ़ना शुरू हुई, जो जारी है।
- जल की कमी ने बढ़ाया जोखिम: जलवायु परिवर्तन से सूखा पड़ने की घटनाएं बढ़ रही हैं, ये और भी बढ़ेंगी। एक अनुमान के मुताबिक आने वाले छह महीनों में पूर्वी अमेरिका, लैटिन अमेरिका के बड़े हिस्से, अफ्रीका, दक्षिणपूर्वी एशिया के क्षेत्र इससे प्रभावित हो सकते हैं। केपटाउन में साल 2018 में पड़े रिकॉर्ड तोड़ सूखे से 40 लाख लोग प्रभावित हुए थे। बता दें कि मौजूदा दौर में दुनिया की 80 फीसदी आबादी पानी की किल्लत झेल रही है। कोरोना के खिलाफ जंग में बार-बार हाथ धोने के लिए पानी की कितनी ज्यादा जरूरत है यह बात किसी से छिपी नहीं है।
- अगले 30 साल में आग लगने की घटनाएं और बढ़ेंगी: जलवायु परिवर्तन से तापमान बढ़ने और सही समय पर बारिश नहीं होने की वजह से जंगलों और शहरों में लगने वाली आग की घटनाएं हाल के कुछ वर्षों में बढ़ी हैं। इससे साफ जाहिर है कि वर्ष 2000 के स्तर के मुकाबले 2050 की पर्यावरणीय परिस्थितियों में भारी अंतर होगा। नतीजतन जंगलों या शहरों में आग लगने की घटनाएं 27 फीसदी तक बढ़ सकती हैं।
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