कोरोना के संकट काल में लखनऊ के दवा बाजार में सुरक्षा उपकरणों का नया बाजार विकसित हो रहा है। सर्जिकल आइटम से कहीं ज्यादा इनकी डिमांड है। प्रतिदिन के करीब 10 करोड़ के बाजार में करीब एक करोड़ का कारोबार मास्क, ग्लब्स और सैनिटाइजर का है। कई नई संस्थाएं भी इस कारोबार में उतर गई है और इसका लाइसेंस लेने के लिए होड़ लगी हुई है।
राजधानी में 850 दवा दुकानें हैं। सामान्य दिनों में प्रतिदिन करीब 25 से 30 करोड़ का कारोबार होता रहा है, जो अब घटकर 8 से 10 करोड़ तक पहुंच गया है। दवा कारोबारियों की मानें तो पहले ग्लव्स, सैनिटाइजर और मास्क का प्रयोग सिर्फ अस्पतालों में होता था। जब 25 से 30 करोड़ का दवा कारोबार था तो इसकी बिक्री करीब एक लाख के आसपास थी।
फुटकर बाजार में सिर्फ मास्क की बिक्री थी। इसलिए 99 फीसदी फुटकर दुकानदार इन चीजों को रखते ही नहीं थे। फरवरी माह के बाद इसकी डिमांड में उछाल आया। दवा कारोबारियों का कहना है कि थोक में सर्जिकल मास्क 1000 का बंडल माह भर आसानी से चल जाता था, लेकिन 20 फरवरी के बाद इसकी डिमांड बढ़नी शुरू हुई। मार्च माह के पहले सप्ताह में तो मास्क, सैनिटाइजर बाजार से आउट होने लगा। मांग इस कदर बढ़ी की तमाम जगह से कालाबाजारी की भी सूचनाएं आने लगीं। ऐसी स्थिति में ज्यादातर थोक कारोबारियों ने इसे बेचने से ही तौबा कर लिया।
मार्च के पहले सप्ताह में खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग ने दवा कारोबारियों के साथ बैठक की और इसमें उत्पाद तैयार करने वाले कंपनी के प्रतिनिधियों को भी बुलाया गया। कंपनियों से तैयार होने वाले उत्पाद और आपूर्ति के हिसाब से दुकानदारों का टारगेट तय किया गया। इस दौरान दवा बनाने वाली तमाम कंपनियों ने भी सैनिटाइजर आपूर्ति शुरू कर दी।
स्कूल बैग, ड्रेस के बजाय बनाने लगे मास्क: पटेल नगर निवासी सुधा सिंह पहले स्कूल बैग और स्कूल ड्रेस बनाती थी। इनके साथ करीब 10 कारीगर लगे हुए हैं। लेकिन इस बार मार्च माह से मास्क तैयार करना शुरू किया। विभिन्न मेडिकल स्टोर संचालकों की ओर से क्वालिटी और क्वांटिटी के हिसाब से ऑर्डर भी दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि उनके पास अब तक इतना ऑर्डर मिल चुका है कि नया ऑर्डर न आए तो भी अगस्त तक काम चलता रहेगा।
मास्क सैनिटाइजर पर ही फोकस: अमीनाबाद में सर्जिकल आइटम के कारोबारी आनंद पांडेय बताते हैं कि पहले सभी तरह के सर्जिकल आइटम रखते थे। प्रतिदिन करीब 10 लाख तक का कारोबार होता था। अस्पतालों में सर्जरी बंद हो गई तो सर्जिकल आइटम बिकना बंद हो गए। ऐसे में सैनिटाइजर, मास्क और ग्लव्स पर फोकस किया है। लेकिन अभी कारोबार पहले की तरह नहीं चल रहा है। औसतन एक लाख तक का सामान ही बिक पा रहा है।
एफएसडीए के इंस्पेक्टर बृजेश कुमार बताते हैं कि पहले जहां नामचीन पांच से सात कंपनियों के ही सैनिटाइजर बाजार में मिलते थे। वहीं अब इनकी संख्या 50 से अधिक हो गई है। ऐसी स्थिति में बाजार में सैनिटाइजर की कमी नहीं है। प्रतिदिन एफएसडीए की टीम मेडिकल स्टोरों का निरीक्षण कर रही है।
ताकि इनकी अधिक कीमत न वसूली जाए। शुरुआती दौर में समस्या होने की मूल वजह बाजार में उत्पाद की कमी थी। इसी तरह ग्लव्स सप्लाई करने वाली कंपनियों की संख्या में भी तेजी से इजाफा हो रहा है। पहले सिर्फ सर्जिकल ग्लव्स आते थे। अब एन 95 से लेकर कपड़े के थ्री लेयर और सर्जिकल मास्क भी बाजार में भरपूर उपलब्ध हैं
एफएसडीए कार्यालय में पहले दो माह में एक-दो लोग नए लाइसेंस के आवेदन आते थे। लेकिन कोरोना वायरस के आने के बाद सैनिटाइजर बेचने के लिए तमाम लोगों ने आवेदन किया है। सर्जिकल आइटम की बिक्री के लिए आने वाले आवेदन में ज्यादातर मास्क, सैनिटाइजर, फिनायल सहित अन्य केमिकल बेचने की बात कहते हुए लाइसेंस मांग रहे हैं। फिलहाल अभी नए लाइसेंस जारी नहीं किए गए हैं, क्योंकि पूरी टीम फील्ड में लगी हुई है। जब तक आवेदनकर्ता के दुकान के सभी मानक का निरीक्षण नहीं किया जाता है तब तक लाइसेंस नहीं दिया जा सकता है।
पीपीई किट बेचने वाले भी कम नहीं
सिविल अस्पताल के निदेशक डॉ. डीएस नेगी ने बताया कि पहले अस्पतालों में दवा कंपनियों के प्रतिनिधियों की भीड़ रहती थी और वह दवाओं की मार्केटिंग करते थे। लेकिन अब ज्यादातर पीपीई किट लेकर पहुंच रहे हैं। हर कोई अपनी किट को बेहतर बताते हुए दावा कर रहा है। खास बात यह है कि इन कंपनियों के किट को विभिन्न तरह के प्रमाण पत्र भी हासिल हो गए हैं। हालांकि अस्पताल में निजी संस्थाओं की ओर से तैयार की गई किट को नहीं खरीदा गया है। लेकिन निजी संस्थाओं के प्रतिनिधियों की भीड़ यह साबित करती है कि किट का कारोबार तेजी से बढ़ा है।
कोरोना के संकट काल में लखनऊ के दवा बाजार में सुरक्षा उपकरणों का नया बाजार विकसित हो रहा है। सर्जिकल आइटम से कहीं ज्यादा इनकी डिमांड है। प्रतिदिन के करीब 10 करोड़ के बाजार में करीब एक करोड़ का कारोबार मास्क, ग्लब्स और सैनिटाइजर का है। कई नई संस्थाएं भी इस कारोबार में उतर गई है और इसका लाइसेंस लेने के लिए होड़ लगी हुई है।
राजधानी में 850 दवा दुकानें हैं। सामान्य दिनों में प्रतिदिन करीब 25 से 30 करोड़ का कारोबार होता रहा है, जो अब घटकर 8 से 10 करोड़ तक पहुंच गया है। दवा कारोबारियों की मानें तो पहले ग्लव्स, सैनिटाइजर और मास्क का प्रयोग सिर्फ अस्पतालों में होता था। जब 25 से 30 करोड़ का दवा कारोबार था तो इसकी बिक्री करीब एक लाख के आसपास थी।
फुटकर बाजार में सिर्फ मास्क की बिक्री थी। इसलिए 99 फीसदी फुटकर दुकानदार इन चीजों को रखते ही नहीं थे। फरवरी माह के बाद इसकी डिमांड में उछाल आया। दवा कारोबारियों का कहना है कि थोक में सर्जिकल मास्क 1000 का बंडल माह भर आसानी से चल जाता था, लेकिन 20 फरवरी के बाद इसकी डिमांड बढ़नी शुरू हुई। मार्च माह के पहले सप्ताह में तो मास्क, सैनिटाइजर बाजार से आउट होने लगा। मांग इस कदर बढ़ी की तमाम जगह से कालाबाजारी की भी सूचनाएं आने लगीं। ऐसी स्थिति में ज्यादातर थोक कारोबारियों ने इसे बेचने से ही तौबा कर लिया।
तय करना पड़ा टारगेट
मार्च के पहले सप्ताह में खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग ने दवा कारोबारियों के साथ बैठक की और इसमें उत्पाद तैयार करने वाले कंपनी के प्रतिनिधियों को भी बुलाया गया। कंपनियों से तैयार होने वाले उत्पाद और आपूर्ति के हिसाब से दुकानदारों का टारगेट तय किया गया। इस दौरान दवा बनाने वाली तमाम कंपनियों ने भी सैनिटाइजर आपूर्ति शुरू कर दी।
स्कूल बैग, ड्रेस के बजाय बनाने लगे मास्क: पटेल नगर निवासी सुधा सिंह पहले स्कूल बैग और स्कूल ड्रेस बनाती थी। इनके साथ करीब 10 कारीगर लगे हुए हैं। लेकिन इस बार मार्च माह से मास्क तैयार करना शुरू किया। विभिन्न मेडिकल स्टोर संचालकों की ओर से क्वालिटी और क्वांटिटी के हिसाब से ऑर्डर भी दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि उनके पास अब तक इतना ऑर्डर मिल चुका है कि नया ऑर्डर न आए तो भी अगस्त तक काम चलता रहेगा।
मास्क सैनिटाइजर पर ही फोकस: अमीनाबाद में सर्जिकल आइटम के कारोबारी आनंद पांडेय बताते हैं कि पहले सभी तरह के सर्जिकल आइटम रखते थे। प्रतिदिन करीब 10 लाख तक का कारोबार होता था। अस्पतालों में सर्जरी बंद हो गई तो सर्जिकल आइटम बिकना बंद हो गए। ऐसे में सैनिटाइजर, मास्क और ग्लव्स पर फोकस किया है। लेकिन अभी कारोबार पहले की तरह नहीं चल रहा है। औसतन एक लाख तक का सामान ही बिक पा रहा है।
50 से अधिक कंपनियां उतरीं बाजार में
एफएसडीए के इंस्पेक्टर बृजेश कुमार बताते हैं कि पहले जहां नामचीन पांच से सात कंपनियों के ही सैनिटाइजर बाजार में मिलते थे। वहीं अब इनकी संख्या 50 से अधिक हो गई है। ऐसी स्थिति में बाजार में सैनिटाइजर की कमी नहीं है। प्रतिदिन एफएसडीए की टीम मेडिकल स्टोरों का निरीक्षण कर रही है।
ताकि इनकी अधिक कीमत न वसूली जाए। शुरुआती दौर में समस्या होने की मूल वजह बाजार में उत्पाद की कमी थी। इसी तरह ग्लव्स सप्लाई करने वाली कंपनियों की संख्या में भी तेजी से इजाफा हो रहा है। पहले सिर्फ सर्जिकल ग्लव्स आते थे। अब एन 95 से लेकर कपड़े के थ्री लेयर और सर्जिकल मास्क भी बाजार में भरपूर उपलब्ध हैं
नए दुकानदारों के बढे़ आवेदन
एफएसडीए कार्यालय में पहले दो माह में एक-दो लोग नए लाइसेंस के आवेदन आते थे। लेकिन कोरोना वायरस के आने के बाद सैनिटाइजर बेचने के लिए तमाम लोगों ने आवेदन किया है। सर्जिकल आइटम की बिक्री के लिए आने वाले आवेदन में ज्यादातर मास्क, सैनिटाइजर, फिनायल सहित अन्य केमिकल बेचने की बात कहते हुए लाइसेंस मांग रहे हैं। फिलहाल अभी नए लाइसेंस जारी नहीं किए गए हैं, क्योंकि पूरी टीम फील्ड में लगी हुई है। जब तक आवेदनकर्ता के दुकान के सभी मानक का निरीक्षण नहीं किया जाता है तब तक लाइसेंस नहीं दिया जा सकता है।
पीपीई किट बेचने वाले भी कम नहीं
सिविल अस्पताल के निदेशक डॉ. डीएस नेगी ने बताया कि पहले अस्पतालों में दवा कंपनियों के प्रतिनिधियों की भीड़ रहती थी और वह दवाओं की मार्केटिंग करते थे। लेकिन अब ज्यादातर पीपीई किट लेकर पहुंच रहे हैं। हर कोई अपनी किट को बेहतर बताते हुए दावा कर रहा है। खास बात यह है कि इन कंपनियों के किट को विभिन्न तरह के प्रमाण पत्र भी हासिल हो गए हैं। हालांकि अस्पताल में निजी संस्थाओं की ओर से तैयार की गई किट को नहीं खरीदा गया है। लेकिन निजी संस्थाओं के प्रतिनिधियों की भीड़ यह साबित करती है कि किट का कारोबार तेजी से बढ़ा है।
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तय करना पड़ा टारगेट
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