शशिधर पाठक, अमर उजाला, नई दिल्ली।
Updated Fri, 05 Jun 2020 04:04 AM IST
भारत की तरफ से लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह 6 जून को चीनी सैनिकों की लद्दाख क्षेत्र में घुसपैठ पर अपने चीनी समकक्ष से चर्चा करेंगे। इससे पहले दोनों देशों के मेजर जनरल स्तर के अधिकारियों ने चर्चा की थी, जिसका कोई नतीजा नहीं निकला था।
सैन्य सूत्र बताते हैं कि मंगलवार दो जून को नॉर्दर्न आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल वाईके जोशी ने लद्दाख का दौरा किया था और इसके बाद उच्च स्तर पर हुई चर्चा में कुछ बातों पर सहमति बनी है। चीन की सेना का पीछे हटना इस सहमति की पहली शर्त थी। बताते हैं इसके बाद चीन की सेना दो किमी और भारत की सेना भी कुछ पीछे हटी है। सेना मुख्यालय को उम्मीद है 6 जून के बाद चीन की सेना अपने क्षेत्र में लौट जाएंगी।
लद्दाख में भारत और चीन दोनों ने संभाल रखा है मोर्चा
सैन्य सूत्रों के अनुसार पिछले महीने पांच मई के आस-पास चीन के सैनिकों ने लद्दाख में और इसके बाद सिक्किम में धुसपैठ और भारतीय सैनिकों के साथ हाथापाई जैसी स्थिति को अंजाम दिया था। बाद में वह (चीन) सिक्किम में शांत हो गए, लेकिन लद्दाख में आक्रमक होने के साथ-साथ संख्या बढ़ाते (इस समय कोई पांच हजार सैनिक और साजो-सामान) चले गए।
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए भारत ने भी जवाबी कार्रवाई में सैनिकों की संख्या, तोपों की तैनाती समेत तमाम निर्णय लेकर जैसे को तैसा संदेश देना शुरू कर दिया। प्योंगयांग शो लेक और गालवां नाला के पास भारतीय सैनिक भी डट गए। इसके बाद दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों के बीच की सैन्य डिप्लोमेसी का असर दिखाई देना शुरू हुआ।
मेजर जनरल स्तर के अधिकारियों की बातचीत का नतीजा न निकलने के बाद अब लेफ्टिनेंट जनरल स्तर के सैन्य अधिकारी इसे सुलझाने की कोशिश करेंगे। इसको लेकर वार्ता के करीब 10 दौर हो चुके हैं। इस बार वार्ता की शर्त पहले दोनों देशों की सेनाओं को पीछे ले जाकर चर्चा शुरू करने की रही है।
- चीनी मामलों के जानकार स्वर्ण सिंह का कहना है राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपने देश के एकमात्र सर्वोच्च नेता बनकर उभरते जा रहे हैं, लेकिन चीन में यह सबको मंजूर नहीं है। सेना और वहां के रक्षा मंत्रालय में ऐसे लोग हैं, जो समय-समय पर इस तरह की घुसपैठ से अपनी नाराजगी व्यक्त करते रहते हैं। यही कारण है कि इस बार का समय भी चीन में हो रहे दो महत्वपूर्ण अधिवेशनों की टाइमिंग देखकर चुना गया।
- चीनी व्यापार और बाजार पर अध्ययन कर रहे पीयूष कुमार का कहना है कि कोविड-19 ने चीन के सामने चुनौती का पहाड़ कर दिया है। इससे चीन की अर्थव्यवस्था को करारा झटका लगा है। वहां बेरोजगारी बढ़ रही है। अंतरराष्ट्रीय मांग घटी है। निर्यात घटा है।
- अमेरिका, रूस, भारत, नेपाल की तरह चीन में भी राष्ट्रवाद का कार्ड चल रहा है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग इसके वहां सबसे बड़े नेता हैं। शी जिनपिंग के हिमायती मानते हैं कि दुनिया में अब चीन को अपनी शक्ति, क्षमता सबकुछ प्रदर्शित करने का सही अवसर आ गया है।
- चीन का अमेरिका के साथ व्यापार के मामले में टकराव चल रहा है। अमेरिका दक्षिण चीन सागर में चीन के मंसूबे कामयाब नहीं होने दे रहा है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कोविड-19 वायरस के संक्रमण पर चीन को काफी घेरा है। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) पर आरोप लगाने, वित्तीय मदद रोकने की घोषणा के बाद भी चीन पर अपेक्षित दबाव बनाने में ट्रंप सफल नहीं हो पाए, लेकिन चीन की चिंता जरूर बढ़ा दी है।
- सेना मुख्यालय सूत्रों के अनुसार चीन सीमा विस्तार में लगातार प्रयत्नशील है। वह भारत के साथ कुछ नया नहीं कर रहा है। पहले भी चीन की सेनाएं घुसपैठ करती थीं। अब थोड़ा आक्रामक तरीके से कर रही हैं। चीन इसी तरह का व्यवहार वियतनाम, जापान, ताइवान के साथ भी करता रहा है।
कूटनीति के जानकारों का कहना है कि चीन को पीछे हटना ही होगा। उसकी सबका ध्यान खींचने और बीजिंग से ध्यान भटकाने की कोशिश पूरी हो गई है। इसलिए अब उसके सैनिक बातचीत के बाद भारतीय इलाके छोड़कर चले जाएंगे। सेना के पूर्व और वर्तमान अफसरों को यही उम्मीद भी है।
लेफ्टिनेंट जनरल (पूर्व) लखविंदर सिंह, वायुसेना के पूर्व एयर वाइस मार्शल एनबी सिंह भी यही मानते हैं। इनका कहना है कि 6 जून के बाद अच्छी खबर आएगी। पीयूष कुमार कहते हैं कि चीन को आपका (भारत) बाजार चाहिए? चीनी सामान भारत के बाजार में अच्छी खासी जगह बना चुके हैं।
भारत के तमाम उत्पादों में अब चीन से आयातित सामान लग रहे हैं। आखिर चीन भारत से लड़ाई मोल लेकर इतना बड़ा खतरा क्यों उठाना चाहेगा? वैसे भी दक्षिण एशिया में अभी चीन के हिसाब से भी भारत से टकराने का समय नहीं आया है। चीन में काम कर चुके एक भारतीय राजनयिक को भी यह एक टैक्टिकल मूव के सिवा कुछ नजर नहीं आ रहा है।
पूर्व विदेश सचिव शशांक के अनुसार राष्ट्रपति ट्रंप का खुलकर भारत के साथ आना, जी-7 में शामिल होने का न्यौता देना, चीन के लिए विदेश मंत्री माइक पोम्पियो का वक्तव्य भी पर्याप्त है। शशांक मानते हैं कि चीन पर घुसपैठ को लेकर अंतरराष्ट्रीय दबाव है। उसे पता है कि अमेरिका के साथ अभी उसके तल्ख रिश्ते और आगे भी चलेंगे।
सार
- वार्ता में भारत की पहली शर्त, पीछे हटे चीन की सेना
- 6 जून को लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह के नेतृत्व में होगी बात
- अंतरराष्ट्रीय दबाव ने भी बढ़ाई बीजिंग की परेशानी
- आंतरिक समस्याओं से त्रस्त चीन खेल रहा है राष्ट्रवाद का कार्ड
विस्तार
भारत की तरफ से लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह 6 जून को चीनी सैनिकों की लद्दाख क्षेत्र में घुसपैठ पर अपने चीनी समकक्ष से चर्चा करेंगे। इससे पहले दोनों देशों के मेजर जनरल स्तर के अधिकारियों ने चर्चा की थी, जिसका कोई नतीजा नहीं निकला था।
सैन्य सूत्र बताते हैं कि मंगलवार दो जून को नॉर्दर्न आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल वाईके जोशी ने लद्दाख का दौरा किया था और इसके बाद उच्च स्तर पर हुई चर्चा में कुछ बातों पर सहमति बनी है। चीन की सेना का पीछे हटना इस सहमति की पहली शर्त थी। बताते हैं इसके बाद चीन की सेना दो किमी और भारत की सेना भी कुछ पीछे हटी है। सेना मुख्यालय को उम्मीद है 6 जून के बाद चीन की सेना अपने क्षेत्र में लौट जाएंगी।
लद्दाख में भारत और चीन दोनों ने संभाल रखा है मोर्चा
सैन्य सूत्रों के अनुसार पिछले महीने पांच मई के आस-पास चीन के सैनिकों ने लद्दाख में और इसके बाद सिक्किम में धुसपैठ और भारतीय सैनिकों के साथ हाथापाई जैसी स्थिति को अंजाम दिया था। बाद में वह (चीन) सिक्किम में शांत हो गए, लेकिन लद्दाख में आक्रमक होने के साथ-साथ संख्या बढ़ाते (इस समय कोई पांच हजार सैनिक और साजो-सामान) चले गए।
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए भारत ने भी जवाबी कार्रवाई में सैनिकों की संख्या, तोपों की तैनाती समेत तमाम निर्णय लेकर जैसे को तैसा संदेश देना शुरू कर दिया। प्योंगयांग शो लेक और गालवां नाला के पास भारतीय सैनिक भी डट गए। इसके बाद दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों के बीच की सैन्य डिप्लोमेसी का असर दिखाई देना शुरू हुआ।
मेजर जनरल स्तर के अधिकारियों की बातचीत का नतीजा न निकलने के बाद अब लेफ्टिनेंट जनरल स्तर के सैन्य अधिकारी इसे सुलझाने की कोशिश करेंगे। इसको लेकर वार्ता के करीब 10 दौर हो चुके हैं। इस बार वार्ता की शर्त पहले दोनों देशों की सेनाओं को पीछे ले जाकर चर्चा शुरू करने की रही है।
आखिर चीन ने क्यों की घुसपैठ की कोशिश?
- चीनी मामलों के जानकार स्वर्ण सिंह का कहना है राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपने देश के एकमात्र सर्वोच्च नेता बनकर उभरते जा रहे हैं, लेकिन चीन में यह सबको मंजूर नहीं है। सेना और वहां के रक्षा मंत्रालय में ऐसे लोग हैं, जो समय-समय पर इस तरह की घुसपैठ से अपनी नाराजगी व्यक्त करते रहते हैं। यही कारण है कि इस बार का समय भी चीन में हो रहे दो महत्वपूर्ण अधिवेशनों की टाइमिंग देखकर चुना गया।
- चीनी व्यापार और बाजार पर अध्ययन कर रहे पीयूष कुमार का कहना है कि कोविड-19 ने चीन के सामने चुनौती का पहाड़ कर दिया है। इससे चीन की अर्थव्यवस्था को करारा झटका लगा है। वहां बेरोजगारी बढ़ रही है। अंतरराष्ट्रीय मांग घटी है। निर्यात घटा है।
- अमेरिका, रूस, भारत, नेपाल की तरह चीन में भी राष्ट्रवाद का कार्ड चल रहा है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग इसके वहां सबसे बड़े नेता हैं। शी जिनपिंग के हिमायती मानते हैं कि दुनिया में अब चीन को अपनी शक्ति, क्षमता सबकुछ प्रदर्शित करने का सही अवसर आ गया है।
- चीन का अमेरिका के साथ व्यापार के मामले में टकराव चल रहा है। अमेरिका दक्षिण चीन सागर में चीन के मंसूबे कामयाब नहीं होने दे रहा है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कोविड-19 वायरस के संक्रमण पर चीन को काफी घेरा है। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) पर आरोप लगाने, वित्तीय मदद रोकने की घोषणा के बाद भी चीन पर अपेक्षित दबाव बनाने में ट्रंप सफल नहीं हो पाए, लेकिन चीन की चिंता जरूर बढ़ा दी है।
- सेना मुख्यालय सूत्रों के अनुसार चीन सीमा विस्तार में लगातार प्रयत्नशील है। वह भारत के साथ कुछ नया नहीं कर रहा है। पहले भी चीन की सेनाएं घुसपैठ करती थीं। अब थोड़ा आक्रामक तरीके से कर रही हैं। चीन इसी तरह का व्यवहार वियतनाम, जापान, ताइवान के साथ भी करता रहा है।
चीन को लद्दाख में पीछे हटना ही होगा
कूटनीति के जानकारों का कहना है कि चीन को पीछे हटना ही होगा। उसकी सबका ध्यान खींचने और बीजिंग से ध्यान भटकाने की कोशिश पूरी हो गई है। इसलिए अब उसके सैनिक बातचीत के बाद भारतीय इलाके छोड़कर चले जाएंगे। सेना के पूर्व और वर्तमान अफसरों को यही उम्मीद भी है।
लेफ्टिनेंट जनरल (पूर्व) लखविंदर सिंह, वायुसेना के पूर्व एयर वाइस मार्शल एनबी सिंह भी यही मानते हैं। इनका कहना है कि 6 जून के बाद अच्छी खबर आएगी। पीयूष कुमार कहते हैं कि चीन को आपका (भारत) बाजार चाहिए? चीनी सामान भारत के बाजार में अच्छी खासी जगह बना चुके हैं।
भारत के तमाम उत्पादों में अब चीन से आयातित सामान लग रहे हैं। आखिर चीन भारत से लड़ाई मोल लेकर इतना बड़ा खतरा क्यों उठाना चाहेगा? वैसे भी दक्षिण एशिया में अभी चीन के हिसाब से भी भारत से टकराने का समय नहीं आया है। चीन में काम कर चुके एक भारतीय राजनयिक को भी यह एक टैक्टिकल मूव के सिवा कुछ नजर नहीं आ रहा है।
पूर्व विदेश सचिव शशांक के अनुसार राष्ट्रपति ट्रंप का खुलकर भारत के साथ आना, जी-7 में शामिल होने का न्यौता देना, चीन के लिए विदेश मंत्री माइक पोम्पियो का वक्तव्य भी पर्याप्त है। शशांक मानते हैं कि चीन पर घुसपैठ को लेकर अंतरराष्ट्रीय दबाव है। उसे पता है कि अमेरिका के साथ अभी उसके तल्ख रिश्ते और आगे भी चलेंगे।
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आखिर चीन ने क्यों की घुसपैठ की कोशिश?
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