पोप फ्रांसिस ने पोम्पियो से मिलने से इनकार किया
US elections 2020: कैथोलिक ईसाइयों के सबसे बड़े धर्मगुरू पोप फ्रांसिस ने अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो से मिलने से इनकार कर दिया है. वेटिकन ने बयान जारी कर कहा है कि चुनाव के साल में पोप नेताओं से मिलने से परहेज करते आए हैं.
- News18Hindi
- Last Updated:
October 1, 2020, 11:01 AM IST
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पोप फ्रांसिस नहीं चाहते कि उनसे मुलाक़ात या फिर वेटिकन के नाम का इस्तेमाल चुनावों को प्रभावित करने के लिए किया जाए. पोप इससे पहले अमेरिका में अश्वेत नागरिकों के प्रति बढ़ रहीं हिंसा की घटनाओं के प्रति नाराजगी जाहिर कर चुके हैं. ऐसा भी माना जा रहा है कि पोप से मिलकर पोम्पियो चीन के खिलाफ बयानबाजी करने का प्लान बनाकर वेटिकन गए थे जिसकी भनक पोप फ्रांसिस को पहले ही लग गयी थी.
पोम्पियो के चीन को लेकर दिए बयान से बिगड़ी बात
बता दें कि पोम्पियो चार देशों की यात्रा के तहत वेटिकन सिटी पहुंचे थे. यहां पहुंचने से पहले उन्होंने कहा था कि चीन में मानवाधिकारों का उल्लंघटन हो रहा है. वहां बाकी लोगों के साथ ईसाइयों को भी परेशान किया जा रहा है. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, वेटिकन के अफसर और पोप ऐसी बयानबाजी में उन्हें घसीटने के पोम्पियो के इरादे भांप गए थे. इसलिए ही जब पोम्पियो ने पोप फ्रांसिस से मिलना चाहा तो वेटिकन ने इससे इनकार कर दिया. ट्रंप पर पहले ही कट्टरवादी ईसाई संगठनों को बढ़ावा देने का आरोप लगता रहा है जो कि नस्लवाद के भी समर्थक माने जाते हैं.
इससे पहले पोम्पियो ने कहा था- कैथोलिक चर्च अपनी नैतिक विश्वसनीयता और ताकत को खतरे में डाल रहा है. उन्होंने आरोप लगाया था कि वेटिकन ने चीन से बिशप्स की नियुक्ति को लेकर एक समझौता किया है. अमेरिका को लगता है कि वेटिकन भी चीन के दबाव में उसकी शर्तें मान रहा है. पोम्पियो ने कहा था- दुनिया में धार्मिक आजादी को जितना खतरा चीन में है, उतना कहीं नहीं है. वेटिकन का मानना है कि ट्रंप सरकार अमेरिका में पोप फ्रांसिस की छवि को भी नुकसान पहुंचा रही है. ट्रंप और रिपब्लिकन समर्थक ईसाई संगठनों का मानना है कि पोप फ्रांसिस जरूरत से ज्यादा उदारवादी हैं. साल 2018 में चीन और वेटिकन के बीच बिशप्स को लेकर एक समुझौता हुआ था जिसमें कहा गया था कि चीन में सिर्फ चीनी मूल के बिशप्स की नियुक्ति ही की जा सकेगी.
Discussion about this post