रिटायर्ड आईएएस रमेश थेटे.
रिटायर्ड होने के अगले दिन आईएएस रमेश थेटे (Retired IAS Ramesh Thete) ने कहा, ‘फिल्म ‘द बैटल ऑफ भीमा कोरेगांव (The Battle of Bhima Koregaon)’ जातिहीन और वर्गहीन समाज के लिए एक तरह की क्रांति लाने जा रही है तथा न्याय की भावना को बढ़ावा देगी.’
उन्होंने दावा किया, ‘आज मैं खुलासा कर रहा हूं कि मैं इस फिल्म का डायरेक्टर हूं.’ थेटे ने कहा, ‘यह फिल्म ईस्ट इंडिया कंपनी के 500 महार दलित सैनिकों और मराठा पेशवा शासकों के बीच लड़ाई की असली कहानी पर आधारित है.’ उन्होंने दावा किया कि वह आने वाली फिल्म में एक सामाजिक कार्यकर्ता की भूमिका भी निभा रहे हैं.
थेटे ने कहा ‘भारत में 20 करोड़ दलित हैं और अगर उनमें से सिर्फ दो करोड़ फिल्म देखते हैं तो वे दुखी होंगे कि उनके पुरखों के साथ कैसा बर्ताव किया गया और उन्हें किस प्रकार की क्रूरता का शिकार होना पड़ा था.’ उन्होंने कहा, ‘यह फिल्म जातिहीन और वर्गहीन समाज के लिए एक तरह की क्रांति लाने जा रही है तथा न्याय की भावना को बढ़ावा देगी.’
दलित होने के नाते मुझे सताया गयाउन्होंने कहा, ‘इस फिल्म में 2500 लोगों ने अपनी मेहनत की कमाई लगा दी है. यह फिल्म जनभागीदारी से बनाई जा रही है. इस फिल्म में मैं भी गीतकारों और गायकों में से एक हूं.’ थेटे ने दावा किया कि उन्हें भी अपनी सेवा के दौरान दलित होने के कारण भेदभाव का सामना करना पड़ा. 1993 बैच के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी ने कहा, ‘दलित होने के नाते मुझे सताया गया. मेरे करियर के दौरान मेरे खिलाफ दर्जनों झूठे मामले दर्ज किए गए, लेकिन इनमें मेरी जीत हुई. मैं बेदाग हूं.’
मध्यप्रदेश पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के सचिव और आयुक्त पद से सेवानिवृत्त थेटे ने कहा, ‘मैं एक पदोन्नत आईएएस अधिकारी नहीं था, लेकिन, मैं न तो कलेक्टर बन सका और न ही प्रमुख सचिव क्योंकि मैं दलित हूं.’ उन्होंने आरोप लगाया, ‘वे लोग दलितों के साथ न्याय नहीं करना चाहते हैं. वे सिर्फ उनका इस्तेमाल करना चाहते हैं, उनका वोट हासिल करना चाहते हैं और फिर दलितों का शोषण करके अपने एजेंडे को लागू करते हैं. मैं इस विचारधारा से सहमत नहीं हूं.’
सामाजिक लोकतंत्र के लिए करूंगा काम
यह पूछे जाने पर कि उन्होंने अपने साथ हुए कथित अन्याय और भेदभाव का उन्होंने विरोध क्यों नहीं किया, तो इस पर थेटे ने कहा कि मैंने एक लंबी लड़ाई लड़ी है, जिसके लिए वह करीब तीन साल तक सेवा से बाहर रहे. उन्होंने कहा, ‘अलग-अलग मंचों से मैं सामाजिक लोकतंत्र के लिए काम करने जा रहा हूं, जिसमें ब्राह्मणों और दलितों के साथ समान व्यवहार हो और दोनों को न्याय मिलना चाहिए.’ थेटे ने शुक्रवार को सेवानिवृत्त होने के बाद स्थानीय मीडिया से कहा था कि उन्हें अपनी सेवा के दौरान भेदभाव का सामना करना पड़ा था.
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