पूर्व भारत के महानगर Kolkata में जहां 1100 से ज़्यादा एक्टिव केस हैं तो वहीं, मध्य भारत के Indore जैसे टू टियर शहर तक में बुधवार को कुल संक्रमितों की संख्या करीब 3600 तक हो चुकी थी. पहले प्रमुख महानगरों की पड़ताल करते हैं कि यहां कोरोना वायरस के क्या समीकरण चल रहे हैं और फिर जानेंगे कि बेंगलूरु कैसे अब तक महामारी से खुद को बचाए रखने में कामयाब हो सका है.
तूफान से बचा मुंबई वायरस की चपेट में
देश में कोविड से सबसे ज़्यादा प्रभावित शहर है मुंबई. निसर्ग चक्रवात से तो किसी तरह बच गया यह महानगर कोविड 19 से बचता हुआ नहीं दिख रहा है. बीएमसी के आंकड़ों के मुताबिक मुंबई में कुल केस 41,986 हो चुके थे, जिनमें से 23,629 एक्टिव केस थे. मौतों का आंकड़ा 1368 हो चुका था.
दिल्ली ने क्वारंटाइन समय घटाया
ताज़ा खबरों के मुताबिक दिल्ली में 1513 नए केस सामने आने के बाद कुल केस 23645 हो गए हैं. दूसरी तरफ, राष्ट्रीय राजधानी में आने वाले एसिम्प्टोमैटिक यात्रियों के लिए अनिवार्य क्वारंटाइन की अवधि 14 दिनों से घटाकर 7 दिनों की कर दी गई है. हालांकि दिल्ली में छूट दिए जाने का सिलसिला शुरू हो गया है लेकिन जानकार मान रहे हैं कि दिल्ली में सतर्कता बरतना होगी.
चेन्नई में एक दिन में रिकॉर्ड 1012 मरीज़
ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक दक्षिण भारत के प्रमुख राज्य तमिलनाडु में 24586 कुल केस हैं. हालांकि इस राज्य में मृत्यु दर काफी कम है लेकिन बुधवार शाम की खबरों में कहा गया कि पिछले 24 घंटों में राज्य में रिकॉर्ड 1286 केस दर्ज हुए. जिनमें से 1012 तो केवल चेन्नई में ही. कहा जा रहा है कि तमिलनाडु में कोविड मरीज़ों की बड़ी संख्या वरिष्ठ नागरिकों के साथ पहले से गंभीर रोगों से ग्रस्त लोगों की है.
कोविड के सामने फेल गुजरात मॉडल
गुजरात में ताज़ा आंकड़े कह रहे हैं कि 17617 कुल केस हैं और अब तक 1092 मौतें हो चुकी हैं. गुजरात में भी यही कहानी दिखी कि बुधवार शाम तक पिछले 24 घंटों में राज्य में एक दिन के रिकॉर्ड सबसे ज़्यादा 485 नए मरीज़ सामने आए. अहमदाबाद में ही कुल केसों का आंकड़ा 13063 हुआ. कोरोना के दौर में लगातार आ रही खबरें कह चुकी हैं कि महामारी के सामने गुजरात और अहमदाबाद मॉडल नाकाम साबित हुआ.
क्या कह रहा है बेंगलूरु मॉडल? तकरीबन सवा करोड़ की आबादी वाले इस शहर में महज़ 400 केसों का होना किसी करिश्मे से कम नहीं लगता. लेकिन ऐसा हुआ कैसे? क्या इसे खुशकिस्मती समझा जाए या किसी किस्म का ‘बेंगलूरु मॉडल’ है, जो कारगर साबित हो रहा है? जानकारों की मानें तो ट्रैकिंग, टेस्टिंग और इलाज के मामले में बेंगलूरु ने भी वही किया जो बाकी शहरों ने लेकिन उस कहावत के अनुसार कि ‘महान लोग काम अलग नहीं बल्कि अलग ढंग से करते हैं’.
1. सरकार ने ड्राइविंग सीट पर एक्सपर्ट्स को रखा
कोई सियासी दखलंदाज़ी नहीं. कर्नाटक सरकार ने पहला अहम कदम यही उठाया कि महामारी से लड़ने के लिए बागडोर विशेषज्ञों को पूरी तरह सौंप दी. बेंगलूरु की सक्सेस स्टोरी को लेकर क्विंट की रिपोर्ट के मुताबिक ब्यूरोक्रेसी को हिदायत दी कि मेडिकल विशेषज्ञों की सलाहों पर अमल किया जाए. यह बड़ी बात इसलिए है क्योंकि पिछले ही दिनों देश के मेडिकल विशेषज्ञों ने पीएम को लिखी चिट्ठी में यही कहा कि लॉकडाउन जैसे कदम के लिए महामारी विशेषज्ञों की सलाह तक नहीं ली गई.
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आईसीएमआर के महामारी विशेषज्ञ और कर्नाटक की तकनीकी परामर्श समिति के सदस्य गिरधर बाबू के हवाले से क्विंट की रिपोर्ट में उल्लेख है कि तकनीकी समिति को पूरी आज़ादी देना वह सबक है, जो दूसरे राज्यों को कर्नाटक से सीखना चाहिए. कर्नाटक सरकार ने मेडिकल विशेषज्ञों पर पूरी तरह मतलब पूरी तरह भरोसा जताया.

करीब 20 दिन पहले मई महीने के बीच में भी यही स्थिति थी कि अन्य महानगरों के मुकाबले बेंगलूरु ने कोरोना पर बेहतर नियंत्रण रखा था. यही कहानी लगातार जारी रही.
2. तकनीक की मदद से कॉंटैक्ट ट्रैसिंग
चूंकि कर्नाटक में जब संक्रमण के चलते कॉंटैक्ट ट्रैसिंग की बात आई तो कई ज़िलों में यह प्रकिया होनी थी इसलिए शुरूआत में देर हो रही थी. लेकिन आईटी सिटी में तकनीक की मदद से इसका रास्ता निकाला गया. राज्य ने एक एप लॉंच किया. जैसे ही कोई नया केस आए और उसके कॉंटैक्ट्स का पता चले तो उसके पूरे डिटेल्स इस एप पर आ जाते हैं और कॉंटैक्ट जिस जगह हो, वहां की टीम उसे ट्रैक करती है.
कई सरकारी विभागों के करीब 3 लाख कर्मचारियों की कोर टीम कॉंटैक्ट ट्रैकिंग में जुटी रही. कर्नाटक में 90 फीसदी से ज़्यादा केस एसिम्प्टोमैटिक रहे क्योंकि कॉंटैक्ट ट्रैकिंग समय पर हुई.
3. इलाज के लिए अनूठे रास्ते खोजे
कॉंटैक्ट ट्रैस किए जाने के साथ ही सही लोगों का सही समय पर इलाज किया जाना बेंगलूरु मॉडल की खास बात रही. बीते 15 अप्रैल को कर्नाटक ने आदेश दिया कि राज्य में जितने लोग इन्फ्लुएंज़ा और गंभीर सांस रोगों से पीड़ित हैं, उन सबके टेस्ट किए जाएं. इन केसों को पहचानने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने मेडिकल स्टोरों को जानकारी देने की हिदायत दी, जो लोग इस तरह के रोगों की दवाएं खरीद रहे थे. इसके अलावा, कर्नाटक में करीब 72 फीसदी परिवारों का डोर टू डोर सर्वे किया जा चुका है.
4. कंटेनमेंट ज़ोन्स पर बेहतर नियंत्रण
मुंबई में धारावी, दिल्ली में तबलीगी जमात कॉन्फ्रेंस और चेन्नई में कोयमबेडू मार्केट जैसे मामलों के कारण भी इन शहरों में संक्रमण के हालात बेकाबू हुए, लेकिन बेंगलूरु ने इस दिशा में बेहतर नियंत्रण दिखाया. मसलन मैसूरु में एक फार्मा कंपनी में क्लस्टर दिखने के फौरन बाद पूरे शहर को कठोर लॉकडाउन में रखा गया और 56 दिनों बाद यह पूरा शहर कोविड 19 मुक्त घोषित हुआ.
इसी तरह, बेंगलूरु में घने बसे हाई रिस्क वाले इलाके पादरायणपुरा को पूरी तरह सील कर दिया गया था और वहां सिर्फ स्वास्थ्यकर्मियों के जाने की इजाज़त थी. यह वो इलाका था जहां 22 मई तक बेंगलूरु के 23.6 फीसदी केस थे. लेकिन मई के आखिरी हफ्ते में किए गए करीब 400 रैंडम टेस्ट की रिपोर्ट निगेटिव आई. इसके साथ ही शहर में लॉकडाउन बड़ी सख्ती के साथ किया गया.
केमिकल कॉकटेल का ट्रायल चर्चा में
बेंगलूरु में विशेषज्ञ डॉक्टरों ने इसी मंगलवार से कोविड 19 के इलाज के लिए नया प्रयोग शुरू किया है. साइटोकिन थैरेपी के इस प्रयोग में छह मरीज़ों पर इंजेक्शनों का असर देखा जा रहा है और पहले दो दिनों के बाद डॉक्टरों को सकारात्मक नतीजे मिले हैं. बेंगलूरु मिरर की रिपोर्ट की मानें तो प्रयोग के पहले फेज़ के नतीजे अगले हफ्ते तक आएंगे और सब ठीक रहा तो इस प्रयोग का दूसरा फेज़ शुरू होगा. पहले फेज़ के नतीजों की रिपोर्ट भी ड्रग्स कंट्रोल अथॉरिटी को भेजी जाएगी.
अब अनलॉक 1.0 की चुनौतियां क्या हैं?
डॉ. गिरधर बाबू के हवाले से कहा गया है कि लॉकडाउन में धीरे धीरे ढील दिए जाने के साथ ही तीन कदमों पर ध्यान देना होगा ताकि कर्नाटक कोरोना के प्रकोप से बचा रह सके.
1. कोविड के लक्षणों की परिभाषा को बढ़ाकर इसमें गंध या स्वाद का जाना, कमज़ोरी और मांसपेशियों के दर्द जैसे लक्षण भी जोड़ने होंगे और किसी को कोई भी दो लक्षण एक साथ हों तो टेस्ट करना होंगे.
2. संक्रमण के सुपर स्प्रेडर्स यानी गंभीर रोगियों को तुंत पहचान कर उन्हें आइसोलेट करना होगा. इसके लिए मज़बूत निगरानी तंत्र की ज़रूरत होगी.
3. क्लस्टर यानी संक्रमण का कोई भी झुंड न बन पाए, ध्यान रखना होगा. दुनिया भर में 80 फीसदी केस सिर्फ 20 फीसदी लोगों की वजह से यानी क्लस्टरों से ही फैले. यानी शादियों, सम्मेलनों, बंद जगहों में सामूहिक काम जैसे क्लस्टरों पर लगाम रखनी होगी.
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