सरकार के वन नेशन, वन मार्केट के फैसले को खेती-खलिहानी से जुड़े किसान नेता नया छलावा बता रहे हैं। उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि जब सरकार के स्वामित्व वाली मंडियों में किसान को फसल का दाम नहीं मिल पा रहा है या फिर किसान खुश नहीं है तो सरकारी हस्तक्षेप खत्म होने और कॉरपोरेट जगत के चंगुल में फंसकर किसान कैसे खुश रह लेगा?
किसे फायदा फायदा पहुंचाना चाहती है सरकार?
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के पदाधिकारी सरदार वीएम सिंह, अविक साहा और रामपाल जाट ने ‘वन नेशन वन मार्केट’ को लेकर सवाल उठाया है।
तीनों किसान नेताओं ने कहा कि हम देश के सभी लोगों से जानना चाहते हैं कि 1955 के आवश्यक वस्तु अधिनियम (एसेंशियल कमोडिटी एक्ट) में बदलाव करने से किसान को क्या फायदा होगा?
पूरे देश में किसानों के लिए ‘वन नेशन वन मार्केट’ लागू होने से क्या किसान खुशहाल हो जाएंगे? अभी मंडियों पर सरकार का नियंत्रण है लेकिन किसान को मंडी में अपनी फसल के पूरे दाम नहीं मिल रहे हैं।
और जब सरकारी हस्तक्षेप पूरी तरह खत्म होकर कॉर्पोरेट जगत के पास सभी निर्णय लेने का अधिकार होगा तो उस हालत में किसान कैसे खुश रहेगा?
किसान नेताओं का कहना है कि कृषि उपज मंडी अधिनियम, जो कि आजादी से पहले बना था, उसे खत्म कर केंद्र सरकार किसे फायदा पहुंचाने जा रही है?
किसान नेताओं के अनुसार, यह किसानों पर किय गया वह टेस्ट है जिसमें वैक्सीन पहले दी जा रही है और परीक्षण बाद में होगा। सवाल ये भी है कि कोरोना काल में अब सरकार को इसकी याद कैसे आ गई?
केंद्र ने कही कमोडिटी एक्ट में बदलाव करने की बात
पिछले दिनों वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 1955 से जारी आवश्यक वस्तु अधिनियम यानी एसेंशियल कमोडिटी एक्ट में बदलाव करने की बात कही थी।
एक दिन पहले कैबिनेट ने इस फैसले को मंजूरी दे दी। अब एसेंशियल कमोडिटी एक्ट में मनचाहे बदलाव हो सकेंगे। पूरे देश में किसानों के लिए ‘वन नेशन वन मार्केट’ की व्यवस्था लागू होगी।
तर्क है कि नए केंद्रीय कानून के तहत किसान अपनी फसल कहीं भी बेच सकेंगे। फसल का अच्छा दाम मिलेगा। ई-ट्रेडिंग के जरिए किसान दूसरे राज्यों में कृषि उपज ले जाएंगे।
कृषि सेक्टर को ज्यादा प्रतिस्पर्धी बनाया जा सकेगा। ऑयल सीड्स, दलहन, तिलहन, एडिबल आयल, अनाज, आलू व प्याज का अनियमित स्टॉक रहेगा।
आपदा के दौरान ही सरकार इनके स्टॉक की सीमा तय कर सकेगी।
‘वन नेशन-वन मार्केट’ पर क्या बोले किसान नेता
सरदार वीएम सिंहः बेहतर होता कि वन नेशन, वन रेट लागू कर देते
मंडी पर अब सरकारी नियंत्रण है, तभी किसान परेशान रहता है। खेती की जमीन तो वैसे ही कम हो रही है। छोटे किसान 100 किलोमीटर दूर अपनी फसल बेचने जाएंगे और उनके पैसे फंस गए तो कौन जिम्मेवार होगा।
इतनी दूर जाकर फसल बेचेगा तो उसे क्या बचेगा। बेहतर था कि ‘वन नेशन वन मार्केट’ की बजाए ‘वन नेशन वन रेट’ लागू करते। गांव के आसपास मंडी की सुविधा देनी चाहिए थी। दरअसल, सरकार ने किसान को ‘प्रयोग’ की वस्तु मान लिया है।
उस पर जो मर्जी प्रयोग करो। पीएम फसल बीमा योजना, जिसमें हजारों छेद हैं, मध्यप्रदेश सरकार तो उसे खुद बदलने जा रही है। ‘वन नेशन वन मार्केट’ एक जुमला है, जिसे सरकार ने कोरोना की नाकामी छिपाने के लिए जनता में फेंक दिया।
इसके जरिए सरकार कह रही है कि हम तो पहले वैक्सीन देंगे और बाद में टेस्ट करेंगे। नतीजा चाहे जो भी हो।
अविक साहाः नियंत्रित जगह पर नियंत्रण नहीं कर सके तो खुले मैदान में किसान कैसे बचेगा
केंद्र सरकार किसानों के हितों के साथ खिलवाड़ कर रही है। जब सरकारी नियंत्रण वाली जगह पर नियंत्रण नहीं हो रहा तो वन नेशन वन मार्केट जैसे खुले प्लेटफार्म पर क्या होगा, अंदाजा लगा लें।
मंडी व्यवस्था, फसल का दाम और भुगतान आदि पर सरकार कहेगी कि देखो हमारा तो कहीं हस्तक्षेप है ही नहीं। जब बड़े व्यापारी इसमें कूदेंगे और खरीद की कोई सीमा भी नहीं रहेगी तो ऐसे में किसका फायदा होगा।
किसान को बेहतर रेट कैसे मिलेगा, कोई बताए। बड़े व्यापारी उसी रेट पर फसल खरीद कर स्टॉक कर लेंगे।किसान को क्या मिलेगा, असल लाभ तो व्यापारी को होगा।वन नेशन वन मार्केट में सब कुछ बाजार पर छोड़ दिया गया है।
सरकार न कीमतों पर और न स्टॉक पर नियंत्रण रखेगी। इसके बाद कह रहे हैं कि किसान का भला होगा। कोरोना काल में अपनी नाकामी छिपाने के लिए केंद्र सरकार का ये एक पैंतरा है, इससे ज्यादा कुछ नहीं।
रामपाल जाट: 85 प्रतिशत किसानों के पास केवल पौने दो एकड़ जमीन है…
केंद्र सरकार के ‘बोल तोल और मोल’ में गड़बड़ है, पहले इसे ठीक करे। देश के आजाद होने से पहले अस्तित्व में आए कृषि उपज मंडी अधिनियम को सरकार खत्म करना चाह रही है।
यह किसानों के संघर्ष का नतीजा था। वन नेशन वन मार्केट, पर सरकार झूठ बोल रही है। किसान तो अभी भी किसी मंडी में जाकर अपनी फसल बेच सकता है। देश में कोई रोक नहीं है।
ऐसी अनेक घटनाएं सामने हैं कि जिनमें बड़े व्यापारी किसानों का पैसा हड़प कर भाग जाते हैं। कोई कुछ नहीं कर पाता। केंद्र सरकार की यह नई चाल है। बड़ी सीधी सी बात है कि नई व्यवस्था में जिसके पास पूंजी का भंडार है, वह मंडी का स्वामी बन जाएगा।
विदेशी पूंजी का निवेश होगा तो बड़े कॉर्पोरेट सेक्टर भी पीछे नहीं रहेंगे। मेरा सवाल है कि सरकार गांव में ही यह खरीद क्यों नहीं शुरू करती। एमएसपी पर खरीद सुनिश्चित हो।
85 फीसदी किसान तो ऐसे हैं, जिनके पास पौने दो एकड़ जमीन है। ऐसे में वे दूसरे राज्य में फसल बेचने जाएंगे तो उन्हें क्या बचेगा। केंद्र सरकार ने मंडी की चाबी पूंजीपतियों के हाथ में देने का निर्णय लिया है। यह किसान के खिलाफ एक बड़ी साजिश है।
सार
सरकार का कहना है कि नए केंद्रीय कानून के तहत किसान अपनी फसल कहीं भी बेच सकेंगे। फसल का अच्छा दाम मिलेगा। ई-ट्रेडिंग के जरिए किसान दूसरे राज्यों में कृषि उपज ले जा सकेंगे…
विस्तार
सरकार के वन नेशन, वन मार्केट के फैसले को खेती-खलिहानी से जुड़े किसान नेता नया छलावा बता रहे हैं। उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि जब सरकार के स्वामित्व वाली मंडियों में किसान को फसल का दाम नहीं मिल पा रहा है या फिर किसान खुश नहीं है तो सरकारी हस्तक्षेप खत्म होने और कॉरपोरेट जगत के चंगुल में फंसकर किसान कैसे खुश रह लेगा?
किसे फायदा फायदा पहुंचाना चाहती है सरकार?
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के पदाधिकारी सरदार वीएम सिंह, अविक साहा और रामपाल जाट ने ‘वन नेशन वन मार्केट’ को लेकर सवाल उठाया है।
तीनों किसान नेताओं ने कहा कि हम देश के सभी लोगों से जानना चाहते हैं कि 1955 के आवश्यक वस्तु अधिनियम (एसेंशियल कमोडिटी एक्ट) में बदलाव करने से किसान को क्या फायदा होगा?
पूरे देश में किसानों के लिए ‘वन नेशन वन मार्केट’ लागू होने से क्या किसान खुशहाल हो जाएंगे? अभी मंडियों पर सरकार का नियंत्रण है लेकिन किसान को मंडी में अपनी फसल के पूरे दाम नहीं मिल रहे हैं।
और जब सरकारी हस्तक्षेप पूरी तरह खत्म होकर कॉर्पोरेट जगत के पास सभी निर्णय लेने का अधिकार होगा तो उस हालत में किसान कैसे खुश रहेगा?
किसान नेताओं का कहना है कि कृषि उपज मंडी अधिनियम, जो कि आजादी से पहले बना था, उसे खत्म कर केंद्र सरकार किसे फायदा पहुंचाने जा रही है?
किसान नेताओं के अनुसार, यह किसानों पर किय गया वह टेस्ट है जिसमें वैक्सीन पहले दी जा रही है और परीक्षण बाद में होगा। सवाल ये भी है कि कोरोना काल में अब सरकार को इसकी याद कैसे आ गई?
केंद्र ने कही कमोडिटी एक्ट में बदलाव करने की बात
पिछले दिनों वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 1955 से जारी आवश्यक वस्तु अधिनियम यानी एसेंशियल कमोडिटी एक्ट में बदलाव करने की बात कही थी।
एक दिन पहले कैबिनेट ने इस फैसले को मंजूरी दे दी। अब एसेंशियल कमोडिटी एक्ट में मनचाहे बदलाव हो सकेंगे। पूरे देश में किसानों के लिए ‘वन नेशन वन मार्केट’ की व्यवस्था लागू होगी।
तर्क है कि नए केंद्रीय कानून के तहत किसान अपनी फसल कहीं भी बेच सकेंगे। फसल का अच्छा दाम मिलेगा। ई-ट्रेडिंग के जरिए किसान दूसरे राज्यों में कृषि उपज ले जाएंगे।
कृषि सेक्टर को ज्यादा प्रतिस्पर्धी बनाया जा सकेगा। ऑयल सीड्स, दलहन, तिलहन, एडिबल आयल, अनाज, आलू व प्याज का अनियमित स्टॉक रहेगा।
आपदा के दौरान ही सरकार इनके स्टॉक की सीमा तय कर सकेगी।
‘वन नेशन-वन मार्केट’ पर क्या बोले किसान नेता
सरदार वीएम सिंहः बेहतर होता कि वन नेशन, वन रेट लागू कर देते
मंडी पर अब सरकारी नियंत्रण है, तभी किसान परेशान रहता है। खेती की जमीन तो वैसे ही कम हो रही है। छोटे किसान 100 किलोमीटर दूर अपनी फसल बेचने जाएंगे और उनके पैसे फंस गए तो कौन जिम्मेवार होगा।
इतनी दूर जाकर फसल बेचेगा तो उसे क्या बचेगा। बेहतर था कि ‘वन नेशन वन मार्केट’ की बजाए ‘वन नेशन वन रेट’ लागू करते। गांव के आसपास मंडी की सुविधा देनी चाहिए थी। दरअसल, सरकार ने किसान को ‘प्रयोग’ की वस्तु मान लिया है।
उस पर जो मर्जी प्रयोग करो। पीएम फसल बीमा योजना, जिसमें हजारों छेद हैं, मध्यप्रदेश सरकार तो उसे खुद बदलने जा रही है। ‘वन नेशन वन मार्केट’ एक जुमला है, जिसे सरकार ने कोरोना की नाकामी छिपाने के लिए जनता में फेंक दिया।
इसके जरिए सरकार कह रही है कि हम तो पहले वैक्सीन देंगे और बाद में टेस्ट करेंगे। नतीजा चाहे जो भी हो।
अविक साहाः नियंत्रित जगह पर नियंत्रण नहीं कर सके तो खुले मैदान में किसान कैसे बचेगा
केंद्र सरकार किसानों के हितों के साथ खिलवाड़ कर रही है। जब सरकारी नियंत्रण वाली जगह पर नियंत्रण नहीं हो रहा तो वन नेशन वन मार्केट जैसे खुले प्लेटफार्म पर क्या होगा, अंदाजा लगा लें।
मंडी व्यवस्था, फसल का दाम और भुगतान आदि पर सरकार कहेगी कि देखो हमारा तो कहीं हस्तक्षेप है ही नहीं। जब बड़े व्यापारी इसमें कूदेंगे और खरीद की कोई सीमा भी नहीं रहेगी तो ऐसे में किसका फायदा होगा।
किसान को बेहतर रेट कैसे मिलेगा, कोई बताए। बड़े व्यापारी उसी रेट पर फसल खरीद कर स्टॉक कर लेंगे।किसान को क्या मिलेगा, असल लाभ तो व्यापारी को होगा।वन नेशन वन मार्केट में सब कुछ बाजार पर छोड़ दिया गया है।
सरकार न कीमतों पर और न स्टॉक पर नियंत्रण रखेगी। इसके बाद कह रहे हैं कि किसान का भला होगा। कोरोना काल में अपनी नाकामी छिपाने के लिए केंद्र सरकार का ये एक पैंतरा है, इससे ज्यादा कुछ नहीं।
रामपाल जाट: 85 प्रतिशत किसानों के पास केवल पौने दो एकड़ जमीन है…
केंद्र सरकार के ‘बोल तोल और मोल’ में गड़बड़ है, पहले इसे ठीक करे। देश के आजाद होने से पहले अस्तित्व में आए कृषि उपज मंडी अधिनियम को सरकार खत्म करना चाह रही है।
यह किसानों के संघर्ष का नतीजा था। वन नेशन वन मार्केट, पर सरकार झूठ बोल रही है। किसान तो अभी भी किसी मंडी में जाकर अपनी फसल बेच सकता है। देश में कोई रोक नहीं है।
ऐसी अनेक घटनाएं सामने हैं कि जिनमें बड़े व्यापारी किसानों का पैसा हड़प कर भाग जाते हैं। कोई कुछ नहीं कर पाता। केंद्र सरकार की यह नई चाल है। बड़ी सीधी सी बात है कि नई व्यवस्था में जिसके पास पूंजी का भंडार है, वह मंडी का स्वामी बन जाएगा।
विदेशी पूंजी का निवेश होगा तो बड़े कॉर्पोरेट सेक्टर भी पीछे नहीं रहेंगे। मेरा सवाल है कि सरकार गांव में ही यह खरीद क्यों नहीं शुरू करती। एमएसपी पर खरीद सुनिश्चित हो।
85 फीसदी किसान तो ऐसे हैं, जिनके पास पौने दो एकड़ जमीन है। ऐसे में वे दूसरे राज्य में फसल बेचने जाएंगे तो उन्हें क्या बचेगा। केंद्र सरकार ने मंडी की चाबी पूंजीपतियों के हाथ में देने का निर्णय लिया है। यह किसान के खिलाफ एक बड़ी साजिश है।
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