विवादित नक्शे पर नेपाल बाज नहीं आ रहा है। अब वह अपना नया नक्शा संयुक्त राष्ट्र (UN) और अमेरिकी इंटरनेट सर्च इंजन Google को भेजने वाला है। कहा जा रहा है कि यह काम वह जल्द करेगा।
शनिवार को नेपाली न्यूज पोर्टल myRepublica की एक खबर में वहां के भूमि प्रबंधन मंत्री पद्म आर्यल के हवाले से कहा गया, “हम जल्द ही संशोधित नक्शा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को भेजने वाले हैं, जिसमें कालापानी, लिपुलेख और लिंपयाधुरा शामिल हैं।”
आर्यल के अनुसार, “मैप में जो टेक्स्ट इस्तेमाल किया गया है, उसका अंग्रेजी में अनुवाद कर दिया गया है, क्योंकि इसे अगस्त के मध्य तक अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में भेजा जाना है।” बताया जा रहा है कि नेपाल के नए नक्शे की करीब चार हजार कॉपियां अंग्रेजी में छपवाई गई हैं।
नेपाल ने अपना नया राजनीतिक नक्शा 20 मई को जारी किया था, जिसमें भारत के तीन क्षेत्रों को शामिल किया गया है। इसी मुद्दे पर दोनों देशों के बीच में विवाद पनपा है।
दरअसल, पड़ोसी मुल्क ने जो नया नक्शा इसी साल तैयार किया है, उसमें वह अपना Limpiyadhura, Lipulekh और Kalapani को उसने अपना बताया है, जबकि इन तीनों क्षेत्रों पर भारत अपना दावा ठोंकता आया है।
हालांकि, भारत ने नेपाल के इस नक्शे पर दो टूक कहा था- हम इस तरीके से क्षेत्र के कृत्रिम इजाफे को नहीं स्वीकार करेंगे। ऐसा इसलिए, क्योंकि यह चीज ऐतिहासिक दस्तावेजों और सबूतों पर आधारित नहीं है।
नेपाल ने नया नक्शा तब जारी किया था, जब भारत ने आठ मई को कैलाश मानसरोवार के लिए जाने वाली रोड को खोल दिया था, जो कि लिपुलेख दर्रे से होकर गुजरती है।
काठमांडू की ओर से भी जून में कहा गया था कि वह कालापानी के नजदीक एक आर्मी बैरक बनाएगा और अपने देश की आसान आवाजाही के लिए वहां सड़क खोलेगा।
कहा जा रहा है कि UN नेपाल का यह विवादित नक्शा यूज नहीं करेगा और न ही इसे अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध कराएगा। कारण- यूएन जब भी किसी मैप को छपवाता है, तब उसके साथ एक डिस्क्लेमर भी देता है।
संयुक्त राष्ट्र के डिस्क्लेमर से साफ होता है कि वह न तो नक्शों में विभिन्न देशों द्वारा दिखाए गए नाम और सरहदों का न तो विरोध करता है और न ही समर्थन। ऐसे में सवाल है कि फिर नेपाल क्यों नक्शा भेज रहा है? जानकारों की मानें तो पड़ोसी मुल्क यह काम सिर्फ एक प्रोटोकॉल के तहत कर रहा है।
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