भारत और चीन के विदेश मंत्रालय के अनुसार सब कुछ ठीक चल रहा है, तो भारत से लगती सीमा पर चीन सतरंज के घोड़े की तरह ढाई कदम आगे पीछे क्यों हो रहा है?
लद्दाख में चीन की सेना कुछ क्षेत्र से पीछे हट रही, लेकिन उत्तराखंड से अरुणाचल तक उसके सैनिकों का दबाव बढ़ रहा है।
सवाल लाख टके का है, जवाब के नाम पर अभी सन्नाटा और जवाब केवल भविष्य की गर्त में है। लेकिन भारतीय रणनीतिकार भी सैन्य तैयारी में कोई कसर नहीं छोडऩा चाहते।
उत्तराखंड में चीनी घुसपैठ की संभावना को देखते हुए हिंडन से लेकर बरेली एयरफोर्स स्टेशन तक भारत की हर घटना पर सतर्क निगाह है।
क्या है चीन की मंशा?
सेना मुख्यालय और रक्षा मंत्रालय के अधिकारी ऐसे सवाल पर चुप्पी साध लेते हैं। बताते हैं लद्दाख में पेट्रोलिंग प्वाइट 14, 15 और हॉटस्प्रिंग क्षेत्र से चीनी सैनिक थोड़ा पीछे हटे हैं। पीछे भारतीय सैनिक भी हटे हैं, लेकिन अभी समस्या के हल जैसा कुछ नहीं है।
यह केवल एक सकारात्मक संकेत भर है। लेकिन फिंगर 4 से लेकर फिंगर 8 तक चीनी फौज का दबाव बना हुआ है। हालांकि इस समस्या को सुलझाने के लिए 10 राउंड की मेजर जनरल स्तर तक की वार्ता के बाद 6 जून को लेफ्टिेनेंट जनरल रैंक के अफसरों ने मोल्डो में मुद्दे को सुलझाने का प्रयास किया था।
10 जून को मेजर जनरल स्तर की करीब चार घंटे चर्चा चली। अभी यह चर्चा चल रही है, आगे भी कई दौर की बात होनी है।
चीन फिंगर 4 से फिंगर 8 को अपना बताने पर अड़ा है। भारतीय सेना का कहना है कि यह इलाका हमारा है, चीन की फौज खाली कर दे और अप्रैल 2020 की स्थिति में लौट जाए। पैंगोंग त्सो झील, गलवां नाला (नदी), दरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी तक का क्षेत्र भारतीय कब्जे में आता है।
बात भी इसी क्षेत्र को लेकर अटकी है। दौलत बेग ओल्डी एयरफोर्स स्टेशन पर अब भारत का लॉजिस्टिक सपोर्ट देने में सक्षम सी-130 जे हरक्युलिस लैंड और टेकऑफ कर सकता है।
भारत की मंशा इस सीमावर्ती क्षेत्र में सड़क और आधारभूत संसाधन को बढ़ाने की है। ताकि पैंगोंग त्सो, गलवान नाला, फिंगर 4 तक आसानी से पहुंच बन सके।
दौलत बैग ओल्डी से लद्दाख के अन्य क्षेत्र को जोड़ा जा सके, परिवहन व्यवस्था मजबूत बन सके। चीन अपने क्षेत्र में आधरभूत संरचना का विकास तो करना चाहता है, लेकिन भारत के ऐसा करने पर अड़ंगा डाल रहा है।
उत्तराखंड से अरुणाचल तक बढ़ा रहा है फौज का दमखम
मई में उत्तराखंड में चीनी सैनिकों का रुख आक्रामक हो रहा था। उनके हेलीकाप्टर बाराहोती क्षेत्र में भारतीय वायुसीमा का उल्लंघन कर रहे थे। गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र में चीन की गतिविधियों की आशंका को देखकर भारत ने भी सतर्कता बढ़ाई है।
बताते हैं उत्तराखंड में भारतीय सेना की आखिरी चौकी से कोई 28-30 किमी दूर अपने इलाके में चीन ने सैनिकों का बड़ा ठिकाना बनाया है। इसी तरह से पांच मई को चीन की सेना ने लद्दाख क्षेत्र में भारतीय इलाके में 60 वर्ग किमी (रिटा. लेफ्टिनेंट जनरल एचएस पनाग के अनुसार) घुसपैठ की।
सैन्य सूत्र बताते हैं कि भारत, चीन, भूटान के ट्राई जंक्शन डोकलाम में भी चीनी सैनिकों की मौजदगी पहले की तुलना में बढ़ी है। सिक्कम से सटी चीन की सीमा पर भी भारी सैन्य वाहनों का आना-जाना बढ़ा है।
नाथू ला के पास भी चीनी सैनिकों की हरकत देखी जा रही है। अरुणाचल में भी चीनी सैनिक लगातार अपना दबाव बनाए रखते हैं। सैन्य सूत्र बताते हैं कि इन दिनों यह दबाव बढ़ा हुआ महसूस हो रहा है।
भारत की भी है सतर्क निगाह
नेपाल ने भारत की आंखें खोल दी हैं। अचानक उत्ताखंड में लिपुलेख तक भारत की सड़क के उद्घाटन के बाद पड़ोसी देश के विरोध ने चौकन्ना कर दिया है।
बताते हैं लद्दाख में भी पांच मई को चीन की आक्रामक हलचल बढ़ी। भारतीय सैन्य रणनीतिकार इस पूरे घटनाक्रम पर बारीकी से नजर रख रहे हैं।
यहां भी रणनीतिकार भारतीय सैन्य तैयारी में कोई कोताही नहीं छोड़ना चाहते। इसलिए उत्तराखंड के कुमाऊं, गढ़वाल क्षेत्र में सैन्य तैनाती बढ़ाई जा रही है।
लद्दाख में विवादित क्षेत्र पर भारत ने भी चीनी फौज की तादाद को देखते हुए इंफैट्री की डिवीजन और दो रिजर्व ब्रिगेड की तैनाती की है।
इसके अलावा सिक्कम से लेकर अरुणाचल तक की चुनौती पर नजर रखकर सेना किसी भी स्थिति से निबटने की तैयारी कर रही है।
करीब 18-20 साल से भारत चीन से लगती भारत की सीमा पर चुनौतियों को गंभीरता से समझ कर आगे बढ़ रहा है।
चीन को भी समझना चाहिए 1962 नहीं 2020 है
पूर्व वायुसेनाध्यक्ष एयरचीफ मार्शल पीवी नाइक कहते हैं कि भारत और चीन के सैन्य अधिकारियों की बातचीत के सकारात्मक संकेत आ रहे हैं। मेरे विचार में यह चीन की सेना का मनोवैज्ञानिक युद्ध है।
हमारे सैन्य अफसर इससे घबराने वाले नहीं है। एयर वाइस मार्शल (पूर्व) एनबी सिंह का कहना है कि चीन अपनी आदतों से बाज नहीं आता। चिंता की बात है कि अब उसकी हरकतों में आक्रामकता बढ़ रही है।
पूर्व वायुसेनाध्यक्ष और एनबी सिंह दोनों का कहना है कि यह 1962 नहीं 2020 है। इसे चीन को भी समझ लेना चाहिए। मेजर जनरल (पूर्व) लखविंदर सिंह कहते हैं कि कोई युद्ध और टकराव नहीं चाहता।
लेकिन हम यह भी कहना चाहते हैं कि किसी को भी भारतीय सैन्य बलों को कम नहीं आंकना चाहिए। हालांकि तीनों सैन्य अधिकारियों को लग रहा है कि मौजूदा तनाव भले खत्म हो जाए, लेकिन आने वाले समय में सीमा पर चीन के सैनिकों की तुलना में भारत को स्थायी सैन्य तैनाती बढ़ानी पड़ सकती है।
सार
- लद्दाख में फिंगर 4 से फिंगर 8 पर अटकी है बात
- भारत की सीमा पर सड़क और तैयारी है असल मुद्दा
- उत्तराखंड से अरुणाचल तक कर रहा है मोर्चाबंदी, जवाब में भारत भी सतर्क
विस्तार
भारत और चीन के विदेश मंत्रालय के अनुसार सब कुछ ठीक चल रहा है, तो भारत से लगती सीमा पर चीन सतरंज के घोड़े की तरह ढाई कदम आगे पीछे क्यों हो रहा है?
लद्दाख में चीन की सेना कुछ क्षेत्र से पीछे हट रही, लेकिन उत्तराखंड से अरुणाचल तक उसके सैनिकों का दबाव बढ़ रहा है।
सवाल लाख टके का है, जवाब के नाम पर अभी सन्नाटा और जवाब केवल भविष्य की गर्त में है। लेकिन भारतीय रणनीतिकार भी सैन्य तैयारी में कोई कसर नहीं छोडऩा चाहते।
उत्तराखंड में चीनी घुसपैठ की संभावना को देखते हुए हिंडन से लेकर बरेली एयरफोर्स स्टेशन तक भारत की हर घटना पर सतर्क निगाह है।
क्या है चीन की मंशा?
सेना मुख्यालय और रक्षा मंत्रालय के अधिकारी ऐसे सवाल पर चुप्पी साध लेते हैं। बताते हैं लद्दाख में पेट्रोलिंग प्वाइट 14, 15 और हॉटस्प्रिंग क्षेत्र से चीनी सैनिक थोड़ा पीछे हटे हैं। पीछे भारतीय सैनिक भी हटे हैं, लेकिन अभी समस्या के हल जैसा कुछ नहीं है।
यह केवल एक सकारात्मक संकेत भर है। लेकिन फिंगर 4 से लेकर फिंगर 8 तक चीनी फौज का दबाव बना हुआ है। हालांकि इस समस्या को सुलझाने के लिए 10 राउंड की मेजर जनरल स्तर तक की वार्ता के बाद 6 जून को लेफ्टिेनेंट जनरल रैंक के अफसरों ने मोल्डो में मुद्दे को सुलझाने का प्रयास किया था।
10 जून को मेजर जनरल स्तर की करीब चार घंटे चर्चा चली। अभी यह चर्चा चल रही है, आगे भी कई दौर की बात होनी है।
चीन फिंगर 4 से फिंगर 8 को अपना बताने पर अड़ा है। भारतीय सेना का कहना है कि यह इलाका हमारा है, चीन की फौज खाली कर दे और अप्रैल 2020 की स्थिति में लौट जाए। पैंगोंग त्सो झील, गलवां नाला (नदी), दरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी तक का क्षेत्र भारतीय कब्जे में आता है।
बात भी इसी क्षेत्र को लेकर अटकी है। दौलत बेग ओल्डी एयरफोर्स स्टेशन पर अब भारत का लॉजिस्टिक सपोर्ट देने में सक्षम सी-130 जे हरक्युलिस लैंड और टेकऑफ कर सकता है।
भारत की मंशा इस सीमावर्ती क्षेत्र में सड़क और आधारभूत संसाधन को बढ़ाने की है। ताकि पैंगोंग त्सो, गलवान नाला, फिंगर 4 तक आसानी से पहुंच बन सके।
दौलत बैग ओल्डी से लद्दाख के अन्य क्षेत्र को जोड़ा जा सके, परिवहन व्यवस्था मजबूत बन सके। चीन अपने क्षेत्र में आधरभूत संरचना का विकास तो करना चाहता है, लेकिन भारत के ऐसा करने पर अड़ंगा डाल रहा है।
उत्तराखंड से अरुणाचल तक बढ़ा रहा है फौज का दमखम
मई में उत्तराखंड में चीनी सैनिकों का रुख आक्रामक हो रहा था। उनके हेलीकाप्टर बाराहोती क्षेत्र में भारतीय वायुसीमा का उल्लंघन कर रहे थे। गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र में चीन की गतिविधियों की आशंका को देखकर भारत ने भी सतर्कता बढ़ाई है।
बताते हैं उत्तराखंड में भारतीय सेना की आखिरी चौकी से कोई 28-30 किमी दूर अपने इलाके में चीन ने सैनिकों का बड़ा ठिकाना बनाया है। इसी तरह से पांच मई को चीन की सेना ने लद्दाख क्षेत्र में भारतीय इलाके में 60 वर्ग किमी (रिटा. लेफ्टिनेंट जनरल एचएस पनाग के अनुसार) घुसपैठ की।
सैन्य सूत्र बताते हैं कि भारत, चीन, भूटान के ट्राई जंक्शन डोकलाम में भी चीनी सैनिकों की मौजदगी पहले की तुलना में बढ़ी है। सिक्कम से सटी चीन की सीमा पर भी भारी सैन्य वाहनों का आना-जाना बढ़ा है।
नाथू ला के पास भी चीनी सैनिकों की हरकत देखी जा रही है। अरुणाचल में भी चीनी सैनिक लगातार अपना दबाव बनाए रखते हैं। सैन्य सूत्र बताते हैं कि इन दिनों यह दबाव बढ़ा हुआ महसूस हो रहा है।
भारत की भी है सतर्क निगाह
नेपाल ने भारत की आंखें खोल दी हैं। अचानक उत्ताखंड में लिपुलेख तक भारत की सड़क के उद्घाटन के बाद पड़ोसी देश के विरोध ने चौकन्ना कर दिया है।
बताते हैं लद्दाख में भी पांच मई को चीन की आक्रामक हलचल बढ़ी। भारतीय सैन्य रणनीतिकार इस पूरे घटनाक्रम पर बारीकी से नजर रख रहे हैं।
यहां भी रणनीतिकार भारतीय सैन्य तैयारी में कोई कोताही नहीं छोड़ना चाहते। इसलिए उत्तराखंड के कुमाऊं, गढ़वाल क्षेत्र में सैन्य तैनाती बढ़ाई जा रही है।
लद्दाख में विवादित क्षेत्र पर भारत ने भी चीनी फौज की तादाद को देखते हुए इंफैट्री की डिवीजन और दो रिजर्व ब्रिगेड की तैनाती की है।
इसके अलावा सिक्कम से लेकर अरुणाचल तक की चुनौती पर नजर रखकर सेना किसी भी स्थिति से निबटने की तैयारी कर रही है।
करीब 18-20 साल से भारत चीन से लगती भारत की सीमा पर चुनौतियों को गंभीरता से समझ कर आगे बढ़ रहा है।
चीन को भी समझना चाहिए 1962 नहीं 2020 है
पूर्व वायुसेनाध्यक्ष एयरचीफ मार्शल पीवी नाइक कहते हैं कि भारत और चीन के सैन्य अधिकारियों की बातचीत के सकारात्मक संकेत आ रहे हैं। मेरे विचार में यह चीन की सेना का मनोवैज्ञानिक युद्ध है।
हमारे सैन्य अफसर इससे घबराने वाले नहीं है। एयर वाइस मार्शल (पूर्व) एनबी सिंह का कहना है कि चीन अपनी आदतों से बाज नहीं आता। चिंता की बात है कि अब उसकी हरकतों में आक्रामकता बढ़ रही है।
पूर्व वायुसेनाध्यक्ष और एनबी सिंह दोनों का कहना है कि यह 1962 नहीं 2020 है। इसे चीन को भी समझ लेना चाहिए। मेजर जनरल (पूर्व) लखविंदर सिंह कहते हैं कि कोई युद्ध और टकराव नहीं चाहता।
लेकिन हम यह भी कहना चाहते हैं कि किसी को भी भारतीय सैन्य बलों को कम नहीं आंकना चाहिए। हालांकि तीनों सैन्य अधिकारियों को लग रहा है कि मौजूदा तनाव भले खत्म हो जाए, लेकिन आने वाले समय में सीमा पर चीन के सैनिकों की तुलना में भारत को स्थायी सैन्य तैनाती बढ़ानी पड़ सकती है।
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