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सुशांत सिंह राजपूत
कुछ लक्षण, जो आपको अपने भीतर झांकने में मदद करेंगे…
- होपलेसनेस, किसी भी प्रकार की नाउम्मीद कि अब कुछ ठीक नहीं हो सकता…
- वर्थलेसनेस, खुद को लेकर यह विचार आना और बार बार आना कि मैं किसी काबिल नहीं या मैं फलां चीज को नहीं हैंडल कर पा रहा.
- हेल्पलेसनेस, यानी किसी मामले विशेष को लेकर मदद कर सकने में खुद को असमर्थ पाना…
- खुद के पैटर्न में बदलाव, जिन चीजों और कामों को करने में पहले आनंद आता था, अब उनमें मजा नहीं आता. रुचियों में अब इंट्रेस्ट खत्म होने लगा हो.
- मूड भी बार- बार खऱाब होने लगे, यानी इसे ऐसे समझें कि यदि हफ्ते में कई बार मूड बिना किसी कारण उदास रहने लगता है तब यह अलार्मिंग हो सकता है.
- गिल्ट, यानी आत्मग्लानि. अतीत में हुई किसी चूक या भूल को सीने से लगाए रखना और खुद को दोषी मानना.

डिप्रेशन की वजह से कई लोग हीन भावना का शिकार हो जाते हैं
7.सेल्फ एस्टीम या फिर कॉन्फिडेंस का कम होना, यानी ऐसा सोचना और मानने लगना कि मैं किसी काबिल नहीं
8. अगर आप बहुत ज्यादा सोने लगे हैं या बहुत कम सोने लगे हों या फिर असहज करने वाले विचारों की वजह से आप रात में उठ जाते हैं और फिर सो नहीं पाते हों.
9. भूख के पैटर्न में बदलाव, यानी खाने का मन नहीं करता हो…या फिर अचानक बहुत ज्यादा खाने लगे हों.
10. यदि आप पहले काफी सोशल रहा करते थे लेकिन अब धीरे धीरे खुद में सिमटने लगे हैं तो…
सबसे जरूरी पॉइंट- यदि आपको खुदकुशी के खयाल आने लगते हैं और ये बार बार आने लगे हों तो इसे सबसे गंभीर तरीके से लेना चाहिए.
डॉक्टर बताती हैं कि हम यह सब जीवन के किसी न किसी फेज और मोड़ पर फील तो करते हैं लेकिन यदि पिछले दो हफ्ते से, ये सब कुछ या इनमें से ज्यादातर पॉइंट्स आपकी कंडीशन से जुड़े हुए लग रहे हों तो सतर्क हो जाएं. ऐसा जरूरी नहीं है कि ये सब आपको अचानक फील होने लगेगा या फिर किसी खास कारण या घटना के बाद ऐसा होने लगेगा. यह बीते समय से शुरू हुआ हो सकता है जो आज भी जारी हो. ऐसे में डॉक्टरी परामर्श लें. झिझकें नहीं, मदद लें.
डिप्रेशन किसे हो सकता है, किसे नहीं…
प्रेरणा कहती हैं कि यह सोचना कि डिप्रेशन हमें नहीं होगा गलत है यह रोग किसी को भी हो सकता है. ये रोग जीवन में कभी भी आपको अपनी चपेट में ले सकता हैं. इसलिए किसी के बाहरी आउटलुट को देखकर यह अंदाजा नहीं लगाया जा सकता कि डिप्रेशन होगा या नहीं. जैसा कि लोग सुशांत के केस में समझ और कह रहे हैं.
वह कहती हैं, रोग के पीछे के कारण हर बार अलग- अलग और कई बार सब कारण एक साथ होते हैं. हालातों पर निर्भर करता है. कई बार जेनेटिक कारण भी होता है इसलिए वह इसकी चपेट में जल्दी आ जाता है. कई बार व्यक्ति विशेष की पर्सनैलिटी सेंसिटिव होती है और हालात भी ऐसे बनने लगते हैं. कई बार अचानक ऐसे हालात ऐसा पैदा हो जाते हैं कि इंसान डिप्रेशन में डूबने लगता है. काफी चैलेंजिग माहौल में आ जाने के बाद भी हालातों को हैंडल करना मुश्किल होता है और यदि उपरोक्त वजहें पहले से ही हों, तब इन परिस्थितियों को संभाल पाना और भी मुश्किल होता है.
दवाओं को लेकर लोगों में हैं भ्रम…
इसके अलावा उन्होंने कहा, कई बार लोगों को लगता है कि किसी रोग विशेष के लिए यदि दवा लगातार लेनी पड़ रही है तो हमें लगता है कि यह पूरे जीवन लेनी पड़ेगी और हम इसे लेकर असहज महसूस करते हैं. जबकि, कई बार किसी खास मानसिक दिक्कत की बीमारी के लिए दी जानी वाली दवा की डोज कम भी कर दी जाती है. तो यह गलत सोच है. ऐसा नहीं सोचना चाहिए. ऐसी सोच के जरिए कई बार लोग मदद लेने से झिझकते हैं. आखिर, थॉयरॉइड और बीपी की दवाएं भी लंबे समय तक (कभी कभी आजीवन) लेनी पड़ती हैं.
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