पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री और नोबेल विजेता विंस्टन चर्चिल.
Britain ने भारत पर कैसे और कितने अत्याचार किए, इसकी कई कहानियां आप पढ़ चुके हैं लेकिन Racism के विरोध में USA से यूरोप तक उठी प्रचंड लहर के बीच पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री के उन भेदभावपूर्ण विचारों के बारे में जानिए जो उसने दुनिया भर की नस्लों के बारे में ज़ाहिर किए थे.
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दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान यूके की जीत का श्रेय अक्सर चर्चिल को दिया जाता है. अस्ल में, एक आर्मी अफसर रहे चर्चिल को दुनिया नोबेल विजेता लेखक के तौर पर भी जानती है. लेकिन, खासकर भारत में कम ही लोग जानते होंगे कि विंस्टन चर्चिल बेहद नस्लवादी व्यक्ति थे और दुनिया भर की नस्लों के बारे में अलग अलग विचार रखते हुए ब्रिटिश नस्ल को सबसे ज़्यादा तरजीह देते थे. जानिए नस्लों को लेकर चर्चिल ने कितना ज़हर उगला था.
भारतीयों से नफरत करते थे चर्चिलचर्चिल भारत में एक आर्मी अफसर के तौर पर लड़ाई में भाग ले चुके थे और भारतीयों से नफरत करने की बात कह चुके थे. उन्होंने भारतीयों को ‘जानवरों जैसे धर्म वाले जानवरों जैसे लोग’ कहा था. यही नहीं, दूसरे विश्वयुद्ध के समय बंगाल के अकाल के वक्त भारतीयों की मदद से इनकार करने वाले चर्चिल ने कहा था कि ‘खरगोशों की तरह पैदा होने वाले अपनी मौत’ मारे जाने के ज़िम्मेदार खुद हैं.

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चीन के लिए कहा था ‘बर्बर देश’
चर्चिल ने चीन के विभाजन का ज़बरदस्त समर्थन करते हुए कहा था कि ‘बर्बर लोगों के देश’ को अपने अधीन करना और उस शासन करना ही होगा. वरना, ऐसे बर्बर देश कभी भी हथियार लेकर हम सभ्य देशों के लिए खतरा बन जाएंगे. आर्यन नस्ल को जीतना ही है इसलिए ऐसे देशों को गुलाम बनाना होगा.
अरब को ‘असभ्य कबीला’ कहते थे चर्चिल
ब्रिटेन के खिलाफ 1920 में इराक के विद्रोह को कुचलने के लिए चर्चिल ने गैर जानलेवा टियर गैस के इस्तेमाल को मंज़ूरी देते हुए कहा अरब के लोगों को ‘बेहूदा या असभ्य कबीले’ कहा था. साथ ही, अरब और अफगान लोगों को ‘मानवता का निचला स्वरूप’ भी माना था. लेकिन दूसरी ओर, यहूदियों को चर्चिल ‘ऊंचे दर्जे की नस्ल’ मानते थे.
इन नस्लों को बेहतर मानते थे चर्चिल
यहूदियों को बहुत साहसी और बेहद उल्लेखनीय नस्ल करार देते हुए चर्चिल कहते थे कि इन लोगों की पूरी वफादारी ईसा मसीह के प्रति रहती है. दूसरी तरफ, चर्चिल ब्रिटिश, पश्चिमी यूरोपीय लोगों और अमेरिका के गोरे लोगों को सबसे बेहतर नस्ल मानते थे. उनका कहना था कि यह ‘सोशल डार्विनिज़्म’ था कि बेहतर नस्लें दुनिया में बेहतर राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक स्थिति में थीं. चर्चिल कम्युनिज़्म के समानता के सिद्धांत के विरोधी थे और कहते थे कि समानता संभव नहीं है.
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First published: June 9, 2020, 7:43 PM IST
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