केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के कैडर अफसर अपने हितों के लिए सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट तक चले गए और जीत भी हासिल की। अदालती लड़ाई तो वे पिछले साल ही जीत गए थे, मगर अभी तक अदालत का फैसला लागू नहीं किया जा रहा है।
नतीजा, आज आईपीएस और कैडर अफसर आमने-सामने हैं। आईजी रैंक से रिटायर हुए पूर्व कैडर अफसर एसएस संधू और वीपीएस पंवार बताते हैं कि 1970 में तत्कालीन होम सेक्रेट्री लल्लन प्रसाद सिंह, जेएस, बीएसएफ व सीआरपीएफ के डीजी ने लिखा था कि केंद्रीय सुरक्षा बलों में आईपीएस के लिए पद आरक्षित न किया जाए।
1955 के एक्ट में भी ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। इन बलों के कैडर अधिकारियों को ही नेतृत्व का मौका दिया जाए। वे आगे बढ़ेंगे और पदोन्नति के जरिए टॉप तक पहुंच जाएंगे।
ये सलाह नहीं मानी गई और केंद्रीय सुरक्षा बलों में अधिकांश पद आईपीएस के लिए रिजर्व कर दिए गए। अब अदालत से लड़ाई जीतने के बाद भी कैडर अफसरों को उनका वाजिब हक नहीं दिया जा रहा है।
CRPF के पहले बैच ने आईपीएस के साथ ली ट्रेनिंग
पूर्व कैडर अधिकारियों के मुताबिक, 1959 में पहली बार आईपीएस अधिकारी, कमांडेंट बन कर केंद्रीय सुरक्षा बलों में आए थे। ये भी तब हुआ, जब आर्मी ने कहा कि हम अफसर नहीं देंगे। हमें अपनी जरूरतें पूरी करनी हैं।
इसके बाद भारत सरकार ने निर्णय लिया कि इन बलों में अफसरों की भर्ती शुरू की जाए। डीएसपी के पद पर भर्ती प्रक्रिया पूरी होने के बाद 1960 में पहला बैच ट्रेनिंग के लिए एनपीए में पहुंचा। ़
वहां आईपीएस के साथ इन अफसरों की ट्रेनिंग हुई। 1962 में लड़ाई छिड़ी तो इन बलों में इमरजेंसी कमीशंड ऑफिसर भेजे गए। लड़ाई खत्म होने के बाद वे वापस लौट गए।

बाद के वर्षों में सीआरपीएफ और बीएसएफ ने खुद के चार सौ से अधिक अफसर तैयार कर लिए। डीजी बीएसएफ केएफ रुस्तम ने कहा, केंद्रीय सुरक्षा बलों में आईपीएस अफसर के लिए पदों का आरक्षण न किया जाए।
इसका 1955 के फोर्स एक्ट में भी प्रावधान नहीं है। हम अपने अफसर तैयार करेंगे, जो कुछ समय बाद फोर्स का नेतृत्व करेंगे। 1968 में सीआरपीएफ के पहले डीजी वीजी कनेत्कर ने कहा था, मुझे आईपीएस की जरूरत नहीं है।
तत्कालीन गृह सचिव एलपी सिंह ने भी दोनों बलों के डीजी की बात को सही माना। सिंह ने कहा, शुरू में बीस फीसदी अफसर आर्मी व आईपीएस से ले लो।
थोड़े समय बाद डीआईजी, कमांडेंट और सहायक कमांडेंट के पद कैडर को सौंप दिए जाएं, लेकिन आईपीएस के लिए वैधानिक आरक्षण न किया जाए।
रातोंरात बदली फाइलें और केंद्रीय बलों में आ गए आईपीएस
1970 में गृह मंत्रालय के डिप्टी डायरेक्टर ‘संगठन’ जेसी पांडे ने लिखा, केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में आईपीएस के लिए पद फिक्स मत करो। इससे कैडर अफसरों के मौके प्रभावित होंगे।
सीआरपीएफ डीजी ने कहा, अब केवल वर्किंग फार्मूला ले लो, जो बाद में नई व्यवस्था के साथ परिवर्तित हो जाएगा। आईपीएस, आर्मी और स्टेट पुलिस, इन तीनों के अफसरों के लिए सुरक्षा बलों में डीआईजी, कमांडेंट और एसी के पद पर आरक्षण न हो।
रातों-रात फाइलें बदल गई और उसी साल आर्डर निकला कि केंद्रीय बलों में डीजी के 100 फीसदी पद, 100 फीसदी आईजी, 75 फीसदी डीआईजी, 40 फीसदी सीओ और एसी के 10 फीसदी पद आईपीएस को दिए जाएं।
समय के साथ इस कोटे में बदलाव होते रहे। 1997 में पहली बार सीआरपीएफ कैडर अफसरों को आईजी के 33 फीसदी पद मिले। 2008 में आईजी के 50 फीसदी और डीआईजी के 80 फीसदी कैडर को मिल गए।

2009 में एडीजी के 33 फीसदी पद कैडर को दिए गए। एसएस संधू बताते हैं कि 1970 से लेकर 2013 तक आईपीएस ने हल्ला नहीं किया। 1970 की फाइलें क्यों दबा दी गई।
कैडर ऑफिसरों को मजबूरन कोर्ट में जाना पड़ा। 2015 में हाईकोर्ट से जीते और 2019 में सुप्रीम कोर्ट से जीत गए, लेकिन नए सर्विस रूल नहीं बना रहे।
आरोप: टालमटोल कर रही है केंद्र सरकार
पूर्व आईजी वीपीएस पंवार और एसएस संधू का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद केंद्र सरकार टालमटोल की नीति पर चल रही है। केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के करीब दस हजार मौजूदा अफसर और सैकड़ों पूर्व अफसर प्रमोशन एवं वित्तीय फायदों में हुए भेदभाव को लेकर परेशान हैं।
जिस तरह से केंद्र सरकार की दूसरी संगठित सेवाओं में एक तय समय के बाद रैंक या फिर उसके समकक्ष वेतन मिलता है, वैसा सभी केंद्रीय सुरक्षा बलों के अधिकारियों को नहीं मिल पा रहा है।
करीब बीस साल की सेवा के बाद आईपीएस अधिकारी आईजी बन जाता है, लेकिन कैडर अफसर उस वक्त कमांडेंट के पद तक पहुंच पाता है।
कैडर अफसर 35 साल की नौकरी के बाद बड़ी मुश्किल से आईजी बनता है। डीओपीटी ने 2008-09 के दौरान केंद्रीय सुरक्षा बलों में ओजीएएस यानी ‘आर्गेनाइज्ड ग्रुप ए सर्विस’ के तहत सेवा नियम बनाने के आदेश जारी किए थे।
लेकिन अभी तक सर्विस रूल नहीं बनाए गए हैं। बल के अधिकारियों का आरोप है कि केंद्र सरकार ने कथित तौर पर आईपीएस एसोसिएशन का पक्ष लेते हुए सुप्रीम कोर्ट में इस मामले का हल निकालने के लिए एक कमेटी गठित करने की बात कह दी।
कमेटी में कैडर का कोई अफसर नहीं है। दूसरी ओर हजारों कैडर अधिकारी प्रमोशन व आर्थिक फायदों से वंचित हैं।
सार
1970 में तत्कालीन होम सेक्रेट्री लल्लन प्रसाद सिंह, जेएस, बीएसएफ व सीआरपीएफ के डीजी ने लिखा था कि केंद्रीय सुरक्षा बलों में आईपीएस के लिए पद आरक्षित न किया जाए….
विस्तार
केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के कैडर अफसर अपने हितों के लिए सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट तक चले गए और जीत भी हासिल की। अदालती लड़ाई तो वे पिछले साल ही जीत गए थे, मगर अभी तक अदालत का फैसला लागू नहीं किया जा रहा है।
नतीजा, आज आईपीएस और कैडर अफसर आमने-सामने हैं। आईजी रैंक से रिटायर हुए पूर्व कैडर अफसर एसएस संधू और वीपीएस पंवार बताते हैं कि 1970 में तत्कालीन होम सेक्रेट्री लल्लन प्रसाद सिंह, जेएस, बीएसएफ व सीआरपीएफ के डीजी ने लिखा था कि केंद्रीय सुरक्षा बलों में आईपीएस के लिए पद आरक्षित न किया जाए।

1955 के एक्ट में भी ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। इन बलों के कैडर अधिकारियों को ही नेतृत्व का मौका दिया जाए। वे आगे बढ़ेंगे और पदोन्नति के जरिए टॉप तक पहुंच जाएंगे।
ये सलाह नहीं मानी गई और केंद्रीय सुरक्षा बलों में अधिकांश पद आईपीएस के लिए रिजर्व कर दिए गए। अब अदालत से लड़ाई जीतने के बाद भी कैडर अफसरों को उनका वाजिब हक नहीं दिया जा रहा है।
CRPF के पहले बैच ने आईपीएस के साथ ली ट्रेनिंग
पूर्व कैडर अधिकारियों के मुताबिक, 1959 में पहली बार आईपीएस अधिकारी, कमांडेंट बन कर केंद्रीय सुरक्षा बलों में आए थे। ये भी तब हुआ, जब आर्मी ने कहा कि हम अफसर नहीं देंगे। हमें अपनी जरूरतें पूरी करनी हैं।
इसके बाद भारत सरकार ने निर्णय लिया कि इन बलों में अफसरों की भर्ती शुरू की जाए। डीएसपी के पद पर भर्ती प्रक्रिया पूरी होने के बाद 1960 में पहला बैच ट्रेनिंग के लिए एनपीए में पहुंचा। ़
वहां आईपीएस के साथ इन अफसरों की ट्रेनिंग हुई। 1962 में लड़ाई छिड़ी तो इन बलों में इमरजेंसी कमीशंड ऑफिसर भेजे गए। लड़ाई खत्म होने के बाद वे वापस लौट गए।

बाद के वर्षों में सीआरपीएफ और बीएसएफ ने खुद के चार सौ से अधिक अफसर तैयार कर लिए। डीजी बीएसएफ केएफ रुस्तम ने कहा, केंद्रीय सुरक्षा बलों में आईपीएस अफसर के लिए पदों का आरक्षण न किया जाए।
इसका 1955 के फोर्स एक्ट में भी प्रावधान नहीं है। हम अपने अफसर तैयार करेंगे, जो कुछ समय बाद फोर्स का नेतृत्व करेंगे। 1968 में सीआरपीएफ के पहले डीजी वीजी कनेत्कर ने कहा था, मुझे आईपीएस की जरूरत नहीं है।
तत्कालीन गृह सचिव एलपी सिंह ने भी दोनों बलों के डीजी की बात को सही माना। सिंह ने कहा, शुरू में बीस फीसदी अफसर आर्मी व आईपीएस से ले लो।
थोड़े समय बाद डीआईजी, कमांडेंट और सहायक कमांडेंट के पद कैडर को सौंप दिए जाएं, लेकिन आईपीएस के लिए वैधानिक आरक्षण न किया जाए।
रातोंरात बदली फाइलें और केंद्रीय बलों में आ गए आईपीएस
1970 में गृह मंत्रालय के डिप्टी डायरेक्टर ‘संगठन’ जेसी पांडे ने लिखा, केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में आईपीएस के लिए पद फिक्स मत करो। इससे कैडर अफसरों के मौके प्रभावित होंगे।
सीआरपीएफ डीजी ने कहा, अब केवल वर्किंग फार्मूला ले लो, जो बाद में नई व्यवस्था के साथ परिवर्तित हो जाएगा। आईपीएस, आर्मी और स्टेट पुलिस, इन तीनों के अफसरों के लिए सुरक्षा बलों में डीआईजी, कमांडेंट और एसी के पद पर आरक्षण न हो।
रातों-रात फाइलें बदल गई और उसी साल आर्डर निकला कि केंद्रीय बलों में डीजी के 100 फीसदी पद, 100 फीसदी आईजी, 75 फीसदी डीआईजी, 40 फीसदी सीओ और एसी के 10 फीसदी पद आईपीएस को दिए जाएं।
समय के साथ इस कोटे में बदलाव होते रहे। 1997 में पहली बार सीआरपीएफ कैडर अफसरों को आईजी के 33 फीसदी पद मिले। 2008 में आईजी के 50 फीसदी और डीआईजी के 80 फीसदी कैडर को मिल गए।

2009 में एडीजी के 33 फीसदी पद कैडर को दिए गए। एसएस संधू बताते हैं कि 1970 से लेकर 2013 तक आईपीएस ने हल्ला नहीं किया। 1970 की फाइलें क्यों दबा दी गई।
कैडर ऑफिसरों को मजबूरन कोर्ट में जाना पड़ा। 2015 में हाईकोर्ट से जीते और 2019 में सुप्रीम कोर्ट से जीत गए, लेकिन नए सर्विस रूल नहीं बना रहे।
आरोप: टालमटोल कर रही है केंद्र सरकार
पूर्व आईजी वीपीएस पंवार और एसएस संधू का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद केंद्र सरकार टालमटोल की नीति पर चल रही है। केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के करीब दस हजार मौजूदा अफसर और सैकड़ों पूर्व अफसर प्रमोशन एवं वित्तीय फायदों में हुए भेदभाव को लेकर परेशान हैं।
जिस तरह से केंद्र सरकार की दूसरी संगठित सेवाओं में एक तय समय के बाद रैंक या फिर उसके समकक्ष वेतन मिलता है, वैसा सभी केंद्रीय सुरक्षा बलों के अधिकारियों को नहीं मिल पा रहा है।
करीब बीस साल की सेवा के बाद आईपीएस अधिकारी आईजी बन जाता है, लेकिन कैडर अफसर उस वक्त कमांडेंट के पद तक पहुंच पाता है।
कैडर अफसर 35 साल की नौकरी के बाद बड़ी मुश्किल से आईजी बनता है। डीओपीटी ने 2008-09 के दौरान केंद्रीय सुरक्षा बलों में ओजीएएस यानी ‘आर्गेनाइज्ड ग्रुप ए सर्विस’ के तहत सेवा नियम बनाने के आदेश जारी किए थे।
लेकिन अभी तक सर्विस रूल नहीं बनाए गए हैं। बल के अधिकारियों का आरोप है कि केंद्र सरकार ने कथित तौर पर आईपीएस एसोसिएशन का पक्ष लेते हुए सुप्रीम कोर्ट में इस मामले का हल निकालने के लिए एक कमेटी गठित करने की बात कह दी।
कमेटी में कैडर का कोई अफसर नहीं है। दूसरी ओर हजारों कैडर अधिकारी प्रमोशन व आर्थिक फायदों से वंचित हैं।
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