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एक तरफ महाराष्ट्र, Delhi और Tamil Nadu के आंकड़े लगातार डरावने बने हुए हैं तो दूसरी तरफ, देश के 18 राज्यों में एक्टिव केस से ज़्यादा संख्या रिकवर हो चुके केसों की है. ऐसा कैसे हो रहा है? दुनिया के मुकाबले में भी भारतीय राज्यों का रिकवरी रेट बहुत बेहतर नज़र आ रहा है. ये पूरी तस्वीर साफ साफ देखना ज़रूरी है.
दिल्ली और मुंबई का रिकवरी रेट सबसे अच्छा है?अगर दुनिया भर के शहरों के हालात देखे जाएं तो यह दावा किया जा सकता है. कोरोना वायरस संक्रमण से सबसे ज़्यादा प्रभावित देश US के New York में कोविड 19 से 21.23% मरीज़ ठीक हुए. वहीं New Jersey में 18.88%. इसके बरक्स दिल्ली में रिकवरी रेट 38.36% रहा है तो Mumbai में 45.65%. ये दोनों महानगर को देश में सबसे ज़्यादा प्रभावित शहरों की लिस्ट में टॉप पर हैं.
लगातार सुधर रहा है रिकवरी रेट
पिछले एक महीने की बात करें तो, भारत में कोरोना संक्रमण को लेकर 19 मई को रिकवरी रेट 38.73% था और दो दिन बाद ही यह दर 40% का आंकड़ा पार कर गई. 31 मई को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह दर 47.76% होना बताया और 2 जून को यह दर 48.19% थी. अब 52% का आंकड़ा पार कर चुकी रिकवरी रेट 15 अप्रैल को 11.42% थी. यानी दो महीने में यह बहुत बेहतर हो गई है.
राज्यवार रिकवरी रेट की स्थिति
देश में एक्टिव केसों के मुकाबले रिकवरी केसों की संख्या को लेकर एक अखबार में दिए गए ब्योरे की मानें तो 18 राज्यों में ऐसी स्थिति है, जहां रिकवरी केस ज़्यादा हैं. इस ब्योरे को जानना भी उपयोगी है.
1. जिन राज्यों में संक्रमण की ग्रोथ रेट ज़्यादा है यानी 5% से ज़्यादा, वहां एक्टिव केस अब भी ज़्यादा हैं. ये राज्य हैं : तमिलनाडु, दिल्ली, हरियाणा, असम, झारखंड, छत्तीसगढ़, गोवा, लद्दाख, नागालैंड और मिज़ोरम.
2. 3% से कम यानी धीमी ग्रोथ रेट वाले अधिकांश राज्यों में रिकवरी केस ज़्यादा हैं, एक्टिव केस कम. ये राज्य और यूटी हैं : गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब, चंडीगढ़, पुडुचेरी, मेघालय, अंडमान निकोबार, दादर नागर हवेली और दमन दीव.
3. 3% से 5% के बीच की ग्रोथ रेट वाले राज्यों में मिला जुला पैटर्न है. ऐसे राज्यों में जहां एक्टिव केस से ज़्यादा रिकवरी केस हैं, उनमें महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, बिहार, आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड, ओडिशा और हिमाचल प्रदेश शुमार हैं.
भारत की हालत कैसे बाकी देशों से बेहतर है?
प्रति दस लाख की आबादी पर कन्फर्म केसों की संख्या के लिहाज़ से भारत कहीं बेहतर है. खबरों के मुताबिक भारत में एक मिलियन आबादी पर करीब 234 केस हैं तो वहीं अमेरिका में 6,477, ब्राज़ील में 4,004, रूस में 3,625 और यूके में 4,337 केस प्रति मिलियन आबादी पर सामने आए.
इसी तरह, प्रति मिलियन आबादी पर मौतों के आंकड़े भी भारत के पक्ष में हैं जहां सिर्फ 7 मौतें होना पाया गया है. दूसरी तरफ, अमेरिका में प्रति मिलियन आबादी पर 355, ब्राज़ील में 201, रूस में 48 और यूके में 614 मौतें दर्ज हुईं. ये आंकड़े ज़्यादा चिंताजनक इसलिए हैं क्योंकि इन देशों में भारत के मुकाबले आबादी बहुत कम है.
तो क्या रही हैं इन आंकड़ों की वजहें?
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की मानें तो आईसीएमआर ने टेस्टिंग क्षमता में काफी वृद्धि की और अब देश में रोज़ाना एक से डेढ़ लाख टेस्ट तक संभव हो गए हैं. देश भर में 893 लैब टेस्टिंग के लिए जुटी हैं जिनमें से 646 सरकारी हैं. 14 जून तक देश में 56,58,614 स्वैब नमूनों की जांच हो चुकी थी. मंत्रालय ने हेल्दी रिकवरी रेट के पीछे समय से केसों की पहचान कर माकूल क्लिनिकल प्रबंधन को बड़ी वजह बताया.
आने वाली चुनौती पर एक नज़र
यह एक एक कदम करते हुए फैलने वाला संक्रमण है. अटलांटिक के एक लेख में एड योंग ने इसे ‘पैचवर्क पैनडैमिक’ सही लिखा है. मतलब ये कि जब न्यूयॉर्क में संक्रमण उतार पर दिखा तो टेक्सस में चिंता देखी गई. इसी तरह भारत में जब महाराष्ट्र में गति धीमी दिखी तो दिल्ली में केस बढ़ने की गति बढ़ी दिखी. जब गुजरात में हालात बेहतर होते दिखे तो तमिलनाडु में बिगड़ते नज़र आए.
कुल मिलाकर बात यह है कि देश में एक्टिव केसों से ज़्यादा संख्या ठीक हो चुके संक्रमितों की हो गई है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सबसे खराब वक्त गुज़र चुका है. यह पैचवर्क महामारी है, पैचवर्क उधड़ेगा तो फिर दरारें दिखेंगी और अब भी कुछ राज्यों में जहां रिकवरी संख्या एक्टिव केसों से ज़्यादा दिख रही है, वहां केस तेज़ी से बढ़ते हुए भी दिख रहे हैं. लगातार सतर्कता ही रोकथाम साबित हो सकेगी.
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