Election in Bihar 2020: बिहार विधानसभा चुनाव में लोजपा ने राजग का जायका बिगाड़ दिया है। 42 सीटें मांग रही लोजपा जदयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारने की धमकी दे रही है। हालांकि भाजपा ने दबाव में न आने का साफ संदेश दे दिया है। पार्टी लोजपा की धमकियों को कोरा दबाव की राजनीति मान रही है। पार्टी आश्वस्त है कि पुरानी चमक खो चुकी लोजपा राजग से बाहर जाने का जोखिम नहीं उठाएगी।
गौरतलब है कि कभी 42 सीटें, कभी 33 सीटों के साथ दो एमएलसी और राज्यसभा की एक सीट, तो कभी उपमुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने की मांग कर रही लोजपा को भाजपा ने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है। पार्टी ने साफ कर दिया है कि वह उसे विधानसभा की 27 और विधान परिषद की दो से अधिक सीटें नहीं देगी। बहरहाल अब फैसला लोजपा प्रमुख चिराग पासवान को लेना है।
इसलिए आश्वस्त है भाजपा
भाजपा की बिहार से जुड़ी रणनीतिक टीम के वरिष्ठ सदस्य के मुताबिक लोजपा ने अगर अलग जाने का फैसला किया तो उसकी हालत रालोसपा की तरह हो जाएगी। पार्टी अपने दम पर राज्य में कोई बड़ा चमत्कार करने की स्थिति में नहीं है।
फिर अलग चुनाव लड़ने की स्थिति में लोजपा को केंद्र की सत्ता से भी हाथ धोना पड़ेगा। ऐसी स्थिति में जब लोजपा के संरक्षक रामविलास पासवान गंभीर रूप से अस्वस्थ हैं, तब चिराग कोई बड़ा फैसला करने की स्थिति में नहीं हैं। रणनीतिकार का मानना है कि भाजपा की उलझन बस धारणा को लेकर है।
अति पिछड़ी जातियों की राजनीति से पस्त हुई लोजपा
बीते दो दशक में लोजपा अपने दम पर राज्य में उल्लेखनीय प्रदर्शन नहीं कर पाई है। चुनाव दर चुनाव पार्टी का वोट प्रतिशत कम होता जा रहा है। 2005 के पहले विधानसभा चुनाव ही एक मात्र चुनाव है, जिसमें लोजपा अपने पीक पर थी। तब पार्टी को 16.29 फीसदी वोट और 29 सीटें हासिल हुई थीं।
उसके बाद इसी साल दोबारा हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी को 19 सीटों और 5 फीसदी वोट का नुकसान हुआ। इसके बाद सीएम नीतीश कुमार के अति पिछड़ी जाति के कार्ड के बाद पार्टी का आधार और गिर गया। साल 2009 के लोकसभा चुनाव में पार्टी खाता भी नहीं खोल पाई।
यहां तक कि अजेय माने जाने वाले रामविलास पासवान भी हाजीपुर से चुनाव हार गए। साल 2010 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को 6.7 फीसदी वोट और तीन सीटें, 2015 विधानसभा चुनाव में दो सीटें और पांच फीसदी वोट ही हासिल हुए। बीते दो लोकसभा चुनाव में पार्टी को छह-छह सीटें तब मिलीं जब वह राजग में शामिल थी।
विरासत की जंग के भी आसार
संरक्षक रामविलास पासवान के गंभीर रूप से बीमार होने के कारण लोजपा में विरासत की जंग के भी आसार बन रहे हैं। चिराग को पार्टी की कमान देने से पासवान परिवार में ही नाराजगी है। हालांकि पासवान के स्वस्थ रहते यह नाराजगी बाहर नहीं आ पाई।
सूत्रों का कहना है कि इससे नाराज धड़ा का नेतृत्व करने वालो पशुपति परास ही चिराग पर अकेले मैदान में उतरने का दबाव बना रहे है। जाहिर तौर पर अकेले उतरने पर पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं होगा और चिराग के नेतृत्व पर सवाल उठेंगे।
भाजपा नहीं जदयू से अदावत
दिलचस्प तथ्य यह है कि लोजपा की भाजपा से नहीं जदयू से अदावत है। लोजपा बार-बार जदयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारने की धमकी दे रही है। साथ ही यह भी कह रही है कि सीट फार्मूले पर बात नहीं बनने के बाद भी वह भाजपा के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारेगी। दरअसल इसकी मुख्य वजह जदयू की ओर से लोजपा को भाव नहीं देना है।
जदयू ने साफ तौर पर कहा भी है कि उसका गठबंधन भाजपा के साथ है, लोजपा के साथ नहीं। एक कारण यह भी है कि राज्य के सीएम नीतीश कुमार ने महादलित कार्ड खेल कर पासवान को दलितों की जगह उनकी स्वजातीय दुसाध जाति का नेता बना दिया। रही सही कसर महादलित से आने जीतनराम मांझी की पार्टी हम को राजग में प्रवेश दिला कर पूरी कर दी।
Election in Bihar 2020: बिहार विधानसभा चुनाव में लोजपा ने राजग का जायका बिगाड़ दिया है। 42 सीटें मांग रही लोजपा जदयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारने की धमकी दे रही है। हालांकि भाजपा ने दबाव में न आने का साफ संदेश दे दिया है। पार्टी लोजपा की धमकियों को कोरा दबाव की राजनीति मान रही है। पार्टी आश्वस्त है कि पुरानी चमक खो चुकी लोजपा राजग से बाहर जाने का जोखिम नहीं उठाएगी।
गौरतलब है कि कभी 42 सीटें, कभी 33 सीटों के साथ दो एमएलसी और राज्यसभा की एक सीट, तो कभी उपमुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने की मांग कर रही लोजपा को भाजपा ने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है। पार्टी ने साफ कर दिया है कि वह उसे विधानसभा की 27 और विधान परिषद की दो से अधिक सीटें नहीं देगी। बहरहाल अब फैसला लोजपा प्रमुख चिराग पासवान को लेना है।
इसलिए आश्वस्त है भाजपा
भाजपा की बिहार से जुड़ी रणनीतिक टीम के वरिष्ठ सदस्य के मुताबिक लोजपा ने अगर अलग जाने का फैसला किया तो उसकी हालत रालोसपा की तरह हो जाएगी। पार्टी अपने दम पर राज्य में कोई बड़ा चमत्कार करने की स्थिति में नहीं है।
फिर अलग चुनाव लड़ने की स्थिति में लोजपा को केंद्र की सत्ता से भी हाथ धोना पड़ेगा। ऐसी स्थिति में जब लोजपा के संरक्षक रामविलास पासवान गंभीर रूप से अस्वस्थ हैं, तब चिराग कोई बड़ा फैसला करने की स्थिति में नहीं हैं। रणनीतिकार का मानना है कि भाजपा की उलझन बस धारणा को लेकर है।
अति पिछड़ी जातियों की राजनीति से पस्त हुई लोजपा
बीते दो दशक में लोजपा अपने दम पर राज्य में उल्लेखनीय प्रदर्शन नहीं कर पाई है। चुनाव दर चुनाव पार्टी का वोट प्रतिशत कम होता जा रहा है। 2005 के पहले विधानसभा चुनाव ही एक मात्र चुनाव है, जिसमें लोजपा अपने पीक पर थी। तब पार्टी को 16.29 फीसदी वोट और 29 सीटें हासिल हुई थीं।
उसके बाद इसी साल दोबारा हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी को 19 सीटों और 5 फीसदी वोट का नुकसान हुआ। इसके बाद सीएम नीतीश कुमार के अति पिछड़ी जाति के कार्ड के बाद पार्टी का आधार और गिर गया। साल 2009 के लोकसभा चुनाव में पार्टी खाता भी नहीं खोल पाई।
यहां तक कि अजेय माने जाने वाले रामविलास पासवान भी हाजीपुर से चुनाव हार गए। साल 2010 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को 6.7 फीसदी वोट और तीन सीटें, 2015 विधानसभा चुनाव में दो सीटें और पांच फीसदी वोट ही हासिल हुए। बीते दो लोकसभा चुनाव में पार्टी को छह-छह सीटें तब मिलीं जब वह राजग में शामिल थी।
विरासत की जंग के भी आसार
संरक्षक रामविलास पासवान के गंभीर रूप से बीमार होने के कारण लोजपा में विरासत की जंग के भी आसार बन रहे हैं। चिराग को पार्टी की कमान देने से पासवान परिवार में ही नाराजगी है। हालांकि पासवान के स्वस्थ रहते यह नाराजगी बाहर नहीं आ पाई।
सूत्रों का कहना है कि इससे नाराज धड़ा का नेतृत्व करने वालो पशुपति परास ही चिराग पर अकेले मैदान में उतरने का दबाव बना रहे है। जाहिर तौर पर अकेले उतरने पर पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं होगा और चिराग के नेतृत्व पर सवाल उठेंगे।
भाजपा नहीं जदयू से अदावत
दिलचस्प तथ्य यह है कि लोजपा की भाजपा से नहीं जदयू से अदावत है। लोजपा बार-बार जदयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारने की धमकी दे रही है। साथ ही यह भी कह रही है कि सीट फार्मूले पर बात नहीं बनने के बाद भी वह भाजपा के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारेगी। दरअसल इसकी मुख्य वजह जदयू की ओर से लोजपा को भाव नहीं देना है।
जदयू ने साफ तौर पर कहा भी है कि उसका गठबंधन भाजपा के साथ है, लोजपा के साथ नहीं। एक कारण यह भी है कि राज्य के सीएम नीतीश कुमार ने महादलित कार्ड खेल कर पासवान को दलितों की जगह उनकी स्वजातीय दुसाध जाति का नेता बना दिया। रही सही कसर महादलित से आने जीतनराम मांझी की पार्टी हम को राजग में प्रवेश दिला कर पूरी कर दी।
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