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साल 1962 के युद्ध के समय चीन ने जीत की स्थिति में युद्धविराम घोषित किया था. इसी पारंपरिक आधार पर समझा जाता है कि भारत के खिलाफ चीन का पलड़ा भारी है लेकिन अमेरिका के बॉस्टन और वॉशिंग्टन में हुए ताज़ा अध्ययन की मानें तो पहाड़ी इलाकों की भौगोलिक स्थितियों में भारत बेहतर स्थिति में है. यानी हाल ही जहां संघर्ष हुआ, वहां भी भारत की भौगोलिक स्थिति मज़बूत है. लेकिन, यहां मुद्दे की बात अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की है.
कौन किससे निभाएगा दोस्ती?
युद्ध दो देशों के बीच ज़रूर होगा, लेकिन दो देश अकेले अकेले नहीं लड़ेंगे. दुनिया के कई देश इन दोनों में से किसी एक का साथ देंगे. ऐसे में कौन किस पर भारी पड़ेगा, इसे समझना महत्वपूर्ण है. इस बारे में विश्लेषण करते हुए सीएनएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन हिमालय क्षेत्र में अपने ही बलबूते पर युद्ध कर सकता है, जबकि जबसे देखा कि चीन सीमा पर सैन्य ताकत बढ़ा रहा है, तबसे भारत ने दूसरे देशों के साथ रक्षा संबंध मज़बूत करने की दिशा में कदम बढ़ाए.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. फाइल फोटो.
अमेरिका से कई तरह के आश्वासन
हाल के कुछ सालों में भारत और अमेरिका सैन्य लिहाज़ से और नज़दीक आए हैं. वॉशिंग्टन ने तो यहां तक कहा कि ‘भारत उसका प्रमुख रक्षा साथी’ है और दोनों देशों के बीच कई स्तरों पर आपसी रक्षा संबंध हुए हैं. सीएनएन की मानें तो अब चीन के साथ हिमालय के क्षेत्र में युद्ध की स्थिति में अमेरिका इंटेलिजेंस और निगरानी के तौर पर भारत को युद्धभूमि के स्पष्ट ब्योरे देकर मदद कर सकता है.
इस मदद से क्या होगा? बेलफर रिपोर्ट के हवाले से कहा गया है कि अगर चीन अपने अंदरूनी इलाकों से भारत की पहाड़ी सीमाओं तक अपनी फौजें लेकर आता है, तो अमेरिका अपनी तकनीक के ज़रिये भारत को अलर्ट करेगा. इससे मदद यह होगी कि भारत हमले का जवाब देने के लिए अपनी तरफ से अतिरिक्त फौजों की तैयारी कर सकेगा.
सैन्य अभ्यास में साथी रहे देशों की तरफ नज़र
अमेरिका के अलावा, जापान, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत संयुक्त सैन्य अभ्यास कर चुका है. सीएनएएस की रिपोर्ट के मुताबिक कहा गया है कि भारत के साथ अभ्यास करने वाले पश्चिमी सैन्य दलों ने हमेशा भारत के दलों की क्रिएटिविटी और खुल को हालात के हिसाब से ढाल लेने की क्षमता की भरसक तारीफ की है. चीन के साथ युद्ध के हालात में भारत इन देशों से सहयोगी की अपेक्षा करेगा.
कौन दे सकता है चीन का साथ?
इस तरह के सैन्य अभ्यासों के हिसाब से देखा जाए तो चीन के अब तक प्रयास काफी शुरूआती रहे हैं. हालांकि पाकिस्तान और रूस के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यासों में काफी एडवांस्ड तकनीकों का प्रयोग हो चुका है. पाकिस्तान और रूस को चीन का रणनीतिक साथी माना जा रहा है लेकिन रूस अब तक तटस्थ रहा है. इस बार वह चीन का साथ दे सकता है या नहीं, इसे लेकर अब तक भी संशय ही है. इसके अलावा, उत्तर कोरिया और मिडिल ईस्ट के किसी देश का चीन को मिलने के भी कयास हैं.

भारत चीन सीमा पर सोमवार को संघर्ष में भारत के 20 जवान शहीद हुए. फाइल फोटो.
चीन भुगतेगा महामारी का खमियाज़ा?
कोविड 19 महामारी के समय में अमेरिका ने चीन के खिलाफ बुने नैरेटिव में कोरोना वायरस को चीनी वायरस कहकर एक वितंडावाद खड़ा किया है कि वैश्विक महामारी के लिए चीन ज़िम्मेदार है. ऐसे में अमेरिका के सहयोगी कई देश चीन के खिलाफ हैं. इन स्थितियों मे अगर अमेरिका युद्ध में भारत का साथ खुलकर देता है, तो अमेरिकी प्रभाव वाले कई देश चीन के खिलाफ खड़े नज़र आएंगे.
नए डी10 गठबंधन से भारत को फायदा
यूनाइटेड किंगडम के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने मई के आखिर में एक नए अंतर्राष्ट्रीय मंच डी10 का आइडिया उछाला, जो अस्ल में 10 लोकतांत्रिक शक्तियों का गठबंधन होगा. ताज़ा खबर के मुताबिक इस गठबंधन में जी7 के सात देश कैनेडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूके और अमेरिका तो शामिल होंगे ही, साथ में भारत, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया भी इसका हिस्सा होंगे.
इस गठबंधन का मकसद पूरी तरह से साझा लाभ और चीन के खिलाफ रणनीतिक एकजुटता बताया जा रहा है. ताज़ा स्थितियों में भारत इस प्रस्ताव को ठुकराएगा नहीं, बल्कि इसमें सभी देशों से सैन्य सहयोग की संभावना भी ढूंढ़ सकता है.
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