जीवन में प्रकृति की आवश्यकताओं के बारे में लोगों को जागरूक करने और प्रकृति को हो रहे नुकसान को रोकने के लिए हर साल 5 जून को ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ के रूप में मनाया जाता है.
दुनियाभर में इस वक्त फैली कोविड-19 (Covid-19) महामारी का ही उदाहरण देखते हैं. इस संक्रमण ने साबित कर दिया है कि जैव विविधताओं (Bio-Diversity) को होने वाला नुकसान किस तरह से पूरी दुनिया के लिए खतरनाक साबित हो सकता है.
जैव विविधताओं की हमारे जीवन में क्यों आवश्यकता है?
दुनियाभर में इस वक्त फैली कोविड-19 महामारी का ही उदाहरण देखते हैं. इस संक्रमण ने साबित कर दिया है कि जैव विविधताओं को होने वाला नुकसान किस तरह से पूरी दुनिया के लिए खतरनाक साबित हो सकता है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार संक्रामक रोग, वैश्विक मृत्यु दर के सबसे बड़े कारणों में से एक हैं. इनमें से 75 फीसदी रोग जूनोटिक हैं. जूनोटिक का तात्पर्य उन संक्रामक रोगों से है, जो जानवरों से मनुष्यों में फैलते हैं.
इसे विस्तार से समझिए. मानव जीविका का सबसे बड़ा स्रोत संतुलित पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर करता है. पारिस्थितिक तंत्र को जितना नुकसान होता जाता है, उसी के अनुपात में जीवन के अस्तित्व और जीविका के संसाधनों में कमी आती जाती है. जैव विविधता के हो रहे नुकसान के चलते निम्न चार तरह से हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचता है.पोषण संबंधी प्रभाव
पोषण का व्यापक अर्थ है. सभी स्वास्थ्यप्रद खाद्य पदार्थ जैसे पौधे से प्राप्त होने वाले फल या पशु के मांस आदि हमें प्रकृति से प्राप्त होते हैं. इन स्रोतों के हो रहे विनाश के चलते भविष्य में पौष्टिक खाद्य पदार्थों के विकल्प में कमी आ सकती है. इसके परिणामस्वरूप हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली के कमजोर होने का डर बना हुआ है.
उदाहरण के तौर पर देखें तो दुनियाभर में आल्मंड मिल्क की मांग तेजी से बढ़ रही है. इस मांग को पूरा करने के लिए मधुमक्खियों को अलग रूप में प्रयोग में लाया जा रहा है. असल में मधुमक्खियां परागण की मदद से पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में मदद करती हैं. इसी के चलते आपको आल्मंड मिल्क और तमाम फल मिल पाते हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर मौजूदा हालात जारी रहे तो एक दिन हो सकता है कि परागकणों पर निर्भर बादाम, शहद या फल आपको मिलें ही नहीं.
उपचारात्मक प्रभाव
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक दुनिया की 60 फीसदी से अधिक की आबादी पारंपरिक चिकित्सा पद्धति पर निर्भर करती है. इसमें प्रयोग में लाए जाने वाले सूक्ष्म पोषक तत्व प्रकृति से प्राप्त किए जाते हैं. पौधे भोजन के अलावा, कई प्रकार के उन तत्वों का भी स्रोत हैं, जिनका इस्तेमाल दवाओं को बनाने के लिए किया जाता है. दुनियाभर में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली इसी पर निर्भर है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर मौजूदा समय की तरह ही जैव विविधताओं की निरंतर हानि होती रही तो औषधीय गुणों से भरपूर कई पेड़-पौधे खत्म हो जाएंगे.
जलवायु परिवर्तन और रहन-सहन का संकट
जैव विविधताओं की हानि, जलवायु को अप्रत्यक्ष ही सही लेकिन प्रभावित अवश्य करती है. पिछले कुछ वर्षों में जीवन पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को स्पष्ट रूप से देखा गया है. उदाहरण के लिए वायु प्रदूषण के स्तर में वृद्धि और इससे जुड़े स्वास्थ्य संबंधी जोखिमों से लेकर प्राकृतिक आपदाओं जैसे गंभीर चक्रवात, तूफान आदि संकट जलवायु परिवर्तन से ही जुड़े हुए हैं. जलवायु परिवर्तन के चलते मनुष्यों और जानवरों के प्राकृतिक आवास पर भी असर देखने को मिला है. परिणामस्वरूप जानवरों की कई सारी प्रजातियां धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही हैं. जलवायु परिवर्तन के चलते न केवल मनुष्यों के लिए जीवन कठिन बनता जा रहा है साथ ही इससे स्वास्थ्य संबंधी खतरे भी तेजी से बढ़ते जा रहे हैं.
संक्रामक प्रभाव
जैव विविधताओं की हो रही हानि के चलते दुनियाभर में कई प्रकार के संक्रमण भी तेजी से बढ़ते जा रहे हैं. चूंकि पृथ्वी से कई सारी प्रजातियां धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही हैं, ऐसे में इनमें रहने वाले सूक्ष्मजीव और वायरस भी अब अपने लिए दूसरा ठिकाना ढूंढ रहे हैं. इन सूक्ष्मजीवों और वायरसों ने अब मानव आबादी को अपना सहारा बनाना शुरू कर दिया है. इसके परिणामस्वरूप संक्रामक बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं जो कई मामलों में घातक भी हैं. जैव विविधता के हो रहे क्षरण और उससे उत्पन्न संक्रामक प्रभावों को मौजूदा समय में कोविड-19 वायरस के रूप में देखा जा सकता है. इस संक्रमण ने पूरी दुनिया में अब तक 63 लाख से अधिक लोगों को अपना शिकार बना लिया है, इससे करीब चार लाख लोगों की जान भी जा चुकी है.
अधिक जानकारी के लिए हमारा आर्टिकल, बादाम की पैदावार बढ़ाने में जा रही अरबों मधुमक्खियों की जान पढ़ें.
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First published: June 3, 2020, 6:33 AM IST
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